सँकरी नदी
थे उस पार आप
गुफ़्तुगू आसाँ
चलते रहे
आ गये दूर तक
चाहा मिलन
आ गयी आँधी
बुढ़ऊ नीम गिरा
पुलिया बना
ठिठक गया
आना हुआ आपका
देखा आँखों में
बिछड़ गये
सदा के लिये हम
फ़ैसला था ये।
© रवीन्द्र सिंह यादव
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