भेड़िया
मेमने से
कह रहा है
आप मेरी शरण में
महफ़ूज़ हैं, सलामत हैं
मेमना समझ नहीं पाता
वक़्त की हेरा-फेरी है
या आयी क़यामत है
अब शिकारी
पैंतरे बदल रहा है
हमदर्द बनकर
ख़ंजर घौंप रहा है
मेमने का योजनाबद्ध
ब्रेन-वाश हो रहा है
चरवाहा चादर तानकर
बे-ख़बर सो रहा है
चरवाहे के वफ़ादार कुत्ते भी
आजकल भूखे रहने लगे हैं
मजबूरन दूर-दूर तक
भोजन तलाशने लगे हैं
ज़माने की हवा के रुख़ में
बदलाव का नशा समाया है
पूछते हैं अब तक
कैसे और कितना कमाया है?
गाँव-शहर-जंगल तक
एक ही शोर छाया है
भविष्य की अनिश्चितता का
ख़ौफ़नाक ख़ामोश ख़तरा क्यों मड़राया है!
© रवीन्द्र सिंह यादव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी का स्वागत है.