गुरुवार, 30 अगस्त 2018

संघर्ष


निकाल...
तेरे तरकश में 
जितने तीर हैं
हमारा क़लम 
तेरे लिए  
 चमचमाती 
शमशीर है (?)


जिगर 
फ़ौलादी हो गया है 
हालात से 
लड़ते-लड़ते
नहीं जीना हमें गवारा 
अब मौत से 
डरते-डरते।  


हम नीम को नीम 
और 
आम को आम ही कहेंगे
इसके लिए ज़ालिम  
तेरा 
हर सितम सहेंगे।  


काग़ज़ी शेर नहीं हम 
मिट्टी के 
मिटते-बनते दीये  हैं
रौशनी रहे 
अँधेरी राहों में 
तो 
चराग़ों में 
ख़ून अपना 
जलने को 
भर दिए हैं।  


ख़ामोशी हमारी 
भारी पड़ेगी 
तेरी सब साज़िशों पर
हमारा अंदाज़ है 
हर हाल में 
मुस्कुराना 
रंजिशें हैं बे-असर 
नवाज़िशों पर।  


हमारा मक़्सद  
इंसाफ़ के लिए
सतत संघर्ष है
पथरीली-कटीली 
राहों पर चलना 
रहा मंज़ूर 
हमें सहर्ष है। 
© रवीन्द्र सिंह यादव

शब्दार्थ / WORD MEANINGS 


शमशीर= तलवार / SWORD 
ज़ालिम  = अत्याचारी, ज़ुल्म ढाने वाला / OPPRESSOR
सितम=अन्याय, अनर्थ / CRUELTY  
नवाज़िश=मेहरबानी, कृपा /KINDNESS, PATRONAGE  



7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को     "भाँति-भाँति के रंग"  (चर्चा अंक-3788)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन और लाजवाब सृजन.

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!अनुज रविन्द्र जी ,बेहतरीन सृजन ।
    निकाल तेरे तरकश में जितनें हैं तीर ,
    हमारा कलम तेरे लिए चमचमाती शमशीर है ....
    बहुत खूब ....प्रश्न चिन्ह नहीं ...कलम में तो बहुत ताकत होती है ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत उम्दा सारगर्भित सृजन! छोटी छोटी सार्थक क्षणिकाएं
    ज्यों नावक के तीर।
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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