निकाल...
तेरे तरकश में
जितने तीर हैं,
हमारा क़लम
तेरे लिए
चमचमाती
शमशीर है (?)
जिगर
फ़ौलादी हो गया है
हालात से
लड़ते-लड़ते,
नहीं जीना हमें गवारा
अब मौत से
डरते-डरते।
हम नीम को नीम
और
आम को आम ही कहेंगे,
इसके लिए ज़ालिम
तेरा
हर सितम सहेंगे।
काग़ज़ी शेर नहीं हम
मिट्टी के
मिटते-बनते दीये हैं,
रौशनी रहे
अँधेरी राहों में
तो
चराग़ों में
ख़ून अपना
जलने को
भर दिए हैं।
ख़ामोशी हमारी
भारी पड़ेगी
तेरी सब साज़िशों पर,
हमारा अंदाज़ है
हर हाल में
मुस्कुराना
रंजिशें हैं बे-असर
नवाज़िशों पर।
हमारा मक़्सद
इंसाफ़ के लिए
सतत संघर्ष है,
पथरीली-कटीली
राहों पर चलना
रहा मंज़ूर
हमें सहर्ष है।
© रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ / WORD MEANINGS
शब्दार्थ / WORD MEANINGS
शमशीर= तलवार / SWORD
ज़ालिम = अत्याचारी, ज़ुल्म ढाने वाला / OPPRESSOR
सितम=अन्याय, अनर्थ / CRUELTY
नवाज़िश=मेहरबानी, कृपा /KINDNESS, PATRONAGE
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को "भाँति-भाँति के रंग" (चर्चा अंक-3788) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और लाजवाब सृजन.
जवाब देंहटाएंवाह!अनुज रविन्द्र जी ,बेहतरीन सृजन ।
जवाब देंहटाएंनिकाल तेरे तरकश में जितनें हैं तीर ,
हमारा कलम तेरे लिए चमचमाती शमशीर है ....
बहुत खूब ....प्रश्न चिन्ह नहीं ...कलम में तो बहुत ताकत होती है ।
लाजवाब सृजन.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा सारगर्भित सृजन! छोटी छोटी सार्थक क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंज्यों नावक के तीर।
बहुत सुंदर।