चिड़िया हाँफती हुई
घोंसले में दाख़िल हुई
चोंच में दबाए चुग्गा
बच्चों को खिलाया,
हालात नाज़ुक हैं
बसेरे के आसपास
टीवी पर
समाचार देख रहे
नन्हे बच्चों ने
चिड़िया को बताया।
मोबोक्रेसी के
भयावह परिवेश में
माँ कितनी रिस्क लेकर
चुग्गा लेने जाती हो,
चिड़ीमार गिरोहों से
ख़ुद को
कैसे बचाकर लौटती हो?
खेतों में उगनेवाले
अन्न के दानों पर
उपयोगितावादी मनुष्य
केवल अपना
अधिकार समझ बैठा है,
अब नई-नई
तरकीबों के साथ
चिड़ियों को उड़ाने नहीं
जान से मारने हेतु
प्रकृति से उलझ बैठा है।
स्वार्थ का समुंदर
दिनोंदिन
रातोंरात
गहरा हो चला है,
शयनरत शाख़ पर
मासूम चिड़िया
मारी जा रही है
जैसे कोई
अहर्निश सताती बला हो।
© रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-09-2020) को "मेम बन गयी देशी सीता" (चर्चा अंक 3826) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आ रवींद्र सिंह यादव जी, "स्वार्थ का समुंदर, दिनों दिन रातों रात गहरा ही चला है।"
जवाब देंहटाएंबगुत सुंदर अभिव्यक्ति! साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ