तुम्हारे प्यार का
रंगीन
महल
मुकम्मल होने से पहले
क्यों ढहता है
बार-बार
भरभराकर
शायद तुमने
चालूपने की
ख़स्ता-हाल
ईंटें चुनी है
प्यार को
रुस्वा किया है
जज़्बात का
नक़ली सीमेंट लगाकर।
© रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 29 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्यार को
जवाब देंहटाएंरुस्वा किया है
जज़्बात का
नक़ली सीमेंट लगाकर
अब प्यार में भी नकलीपन आ जाये तो क्या कहना
वाह!!!!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-10-2020) को "शारदेय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3858) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
-- शारदेय नवरात्र की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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