मन भर हुलास
आया मधुमास
कूकी कोकिला
कूजे पंछी
बसंत
छाया
है।
लो
आया
बसंत
ऋतुराज
फूले पलाश
मादक बयार
है बसंत बहार।
हैं
खेत
बंसती
जाग रही
आम्र मंजरी
सोने चल पड़ी
उदास शीत ऋतु।
© रवीन्द्र सिंह यादव
आया मधुमास
कूकी कोकिला
कूजे पंछी
बसंत
छाया
है।
लो
आया
बसंत
ऋतुराज
फूले पलाश
मादक बयार
है बसंत बहार।
हैं
खेत
बंसती
जाग रही
आम्र मंजरी
सोने चल पड़ी
उदास शीत ऋतु।
© रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-10-2019) को "रोज दीवाली मनाओ, तो कोई बात बने" (चर्चा अंक- 3504) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन सृजन आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
.. वर्ण पिरामिड लिखना आसान नहीं होता है शब्दों का चयन बहुत सोच समझकर के करना पड़ता है ताकि पिरामिड की लय विकृत ना लगे... परंतु आप बहुत ही अच्छा लिखा मैं भी आपसे वन पिरामिड सीखना चाहूंगी
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