पथरीले हठीले
हरियाली से सजे पहाड़
ग़ाएब हो रहे हैं,
बसुंधरा के श्रृंगार
खंडित हो रहे हैं।
एक अवसरवादी
सर्वे के परिणाम पढ़कर
जानकारों से मशवरा ले,
स्टोन क्रशर ख़रीदकर
एक दल में शामिल हो गया।
चँदा भरपूर दिया
संयोगवश / धाँधली करके
हवा का रुख़
सुविधानुसार हुआ,
पत्थर खदान का ठेका मिला
कारोबार में बरकत हुई,
कुछ और स्टोन क्रशर की
आमद हुई।
खदान पर कार्यरत मज़दूर
घिरे हैं गर्द-ओ-ग़ुबार से
पत्थरों को तोड़कर,
बनती पृथक-पृथक आकार की
बेडौल गर्वीली गिट्टी,
पत्थर होते खंड-खंड
महीन से महीनतर,
फिर महीनतम होती
चूरा-चूरा गिट्टी,
मज़दूरों की साँसों के रास्ते
फेफड़ों में जमा हो रही है,
और दौलत!
तथाकथित नेता की
तिजोरियों में!
अगले चुनाव तक
ठेकेदार नेता हो जायेगा
और मज़दूर
भगवान को प्यारा हो जायेगा!
© रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुंदर। वर्तमान हालातों का सटिक आकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आदरणीया ज्योति जी उत्साहवर्धन के लिये। समाज में एक वर्ग ऐसा भी है जिसकी परेशानियों पर हमने चिंता करना छोड़ दिया है।
हटाएंपथरीले हठीले
जवाब देंहटाएंहरियाली से सजे पहाड़
ग़ाएब हो रहे हैं
बसुंधरा के शृंगार ....बहुत सुन्दर संदेश आदरणीय रचना के माध्यम से
सादर
सादर आभार आदरणीया अनीता जी चर्चा में शामिल होने के लिये। समाज के उपेक्षित वर्ग की समस्याएँ अब हमारा ध्यान आकृष्ट नहीं कर पा रहीं हैं। हमारी सम्वेदना सोती जा रही है।
हटाएंआदरणीय रविन्द्र जी धरा का श्रृंगार पहाड़ और पर्वत अवैध खनन के चलते आपना नैसर्गिक सौन्दर्य खो चुके तो अनैतिक निर्णयों के चलते पैसे की चमक में खोये ठेकदार जिन्हें जीते जागते मजदूरों की चिंता नहीं उन्हें बेजुबान पर्वतों की व्यथा कैसे पता होगी ?संवेदनशील रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें और बधाई |
जवाब देंहटाएंआदरणीया रेणु जी आपका बहुत-बहुत आभार सम्वेदनशील टिप्पणी के ज़रिये इस चर्चा को सारगर्भित बनाने के लिये।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत आभार श्वेता जी रचना को पांच लिंकों का आनंद के पटल पर प्रदर्शित करने के लिये.
हटाएंबिलकुल सत्य...
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक रचना
बहुत-बहुत आभार रवीन्द्र जी उत्साहवर्धन के लिये।
हटाएंकविता अच्छी है किन्तु हमारे देशभक्त नेताओं की सदाशयता पर संदेह करना बुरी बात है. मज़दूरों का क्या है, फेफड़ों में पत्थर का चूरा पहुंचेगा तो वो पत्थर-पुरुष कहलाएंगे और अगर इस कारण भगवान को प्यारे हो गए तो इस ज़िल्लत की ज़िन्दगी से छुटकारा पा जाएंगे. और अगर कोई ठेकेदारी करते हुए नेता-पद तक पहुँचता है तो इसमें तो देश का भला ही भला है. घाट-घाट का पानी पी चुका इंसान जनता को पानी पिला-पिलाकर भगवान तक पहुंचा सकता है.
जवाब देंहटाएंसादर नमन सर।
हटाएंसमाज का स्वकेन्द्रित निष्ठुर स्वभाव आज गहन चिंता का विषय है। रचना का भाव विस्तार करने के लिये आपका सादर आभार।
एक अत्यंत गंभीर और गहन चिंतन से भरा विषय ,सादर नमस्कार सर
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार कामिनी जी मनोबल बढ़ाने के लिये। सादर अभिवादन।
हटाएंसंवेदनशील विषय पर गहन विचार के साथ यथार्थ दर्शन करवाती सार्थक रचना ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार कुसुम जी रचना पर मोहक टिप्पणी लिये।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसादर नमन सर।
हटाएंसादर आभार रचना को मान देने के लिये।