यादों का यह कैसा जाना-अनजाना सफ़र है,
भरी फूल-ओ-ख़ार से आरज़ू की रहगुज़र है।
रहनुमा हो जाता कोई,
मिल जाते हैं हम-सफ़र,
रौशनी बन जाता कोई,
हो जाता कोई नज़र,
ऐसी लगन बेताबियों की,
हो जाता कोई दर-ब-दर है।
याद धूप है याद ही छांव है,
तड़प-ओ-ख़लिश का एक गांव है,
याद रात है याद ही दिन है,
न फ़लक़-ज़मीं पर होता पांव है,
हिय में हूक होती है पल-पल,
बस बेक़रारी में चश्म-ए-तर है।
सुध न तन की न ही मन की,
तसव्वुर में रहती तस्वीर उनकी,
ठौर-ए-वस्ल ताजमहल लगता है,
आब-ए-चश्म गंगाजल लगता है,
बे-ख़ुदी में रहती किसे क्या ख़बर,
कब शब हुई कब आयी सहर है।
दौर-ए-ग़म में भाता नहीं मशवरा,
लगता ज्यों चाँदनी रात में हो बारिश,
आये हवा उनके दयार की तो लगता है,
छिपा है इसमें संदेशा और सिफ़ारिश,
ज़माने की लाख बंदिशें तोड़ने,
बार-बार दिल में उठती एक लहर है।
© रवीन्द्र सिंह यादव
भरी फूल-ओ-ख़ार से आरज़ू की रहगुज़र है।
रहनुमा हो जाता कोई,
मिल जाते हैं हम-सफ़र,
रौशनी बन जाता कोई,
हो जाता कोई नज़र,
ऐसी लगन बेताबियों की,
हो जाता कोई दर-ब-दर है।
याद धूप है याद ही छांव है,
तड़प-ओ-ख़लिश का एक गांव है,
याद रात है याद ही दिन है,
न फ़लक़-ज़मीं पर होता पांव है,
हिय में हूक होती है पल-पल,
बस बेक़रारी में चश्म-ए-तर है।
सुध न तन की न ही मन की,
तसव्वुर में रहती तस्वीर उनकी,
ठौर-ए-वस्ल ताजमहल लगता है,
आब-ए-चश्म गंगाजल लगता है,
बे-ख़ुदी में रहती किसे क्या ख़बर,
कब शब हुई कब आयी सहर है।
दौर-ए-ग़म में भाता नहीं मशवरा,
लगता ज्यों चाँदनी रात में हो बारिश,
आये हवा उनके दयार की तो लगता है,
छिपा है इसमें संदेशा और सिफ़ारिश,
ज़माने की लाख बंदिशें तोड़ने,
बार-बार दिल में उठती एक लहर है।
© रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ /WORD MEANINGS
फूल-ओ-ख़ार= फूल और काँटे / FLOWERS AND THORNS
आरज़ू = इच्छा, ख़्वाहिश,चाहत, मनोकामना / DESIRE,WISH
रहगुज़र= राह, रास्ता, मार्ग, पथ / WAY, PATH, ROAD
रहनुमा= पथ-प्रदर्शक, राह दिखने वाला / LEADER, GUIDE
हम-सफ़र= साथी, साथ चलने वाला / FELLOW,TRAVELER
बेताबियों= बेचैनी / RESTLESSNESS
दर-ब-दर = द्वार-द्वार भटकना / BANISHED, EXPELLED
तड़प-ओ-ख़लिश = छटपटाहट और व्यग्रता,बेचैनी,क़ोफ़्त / TORMENT AND UNEASE
फ़लक़-ज़मीं = आसमान और धरती / SKY AND EARTH
हिय = ह्रदय, उर, दिल / HEART
हूक = ह्रदय में यकायक उठने वाली कसक या पीड़ा /
PANG, PAINFUL EMOTION
PANG, PAINFUL EMOTION
बेक़रारी = बेचैनी, बेताबी / RESTLESSNESS, UNEASE
चश्म-ए-तर = आंसूभरी आँख (आँखें ), डबडबाई आँख /
EYES FILLED WITH TEARS
EYES FILLED WITH TEARS
तसव्वुर = कल्पना, ख़याल/ ख़्याल / IMAGINATION, CONCEPTION
ठौर-ए-वस्ल = मिलन का स्थान, ठिकाना /
PLACE OF UNION, MEETING
PLACE OF UNION, MEETING
आब-ए-चश्म = आँखों का पानी, आंसू , अश्क़ / TEARS
बे-ख़ुदी = ख़ुद से बे-ख़बर, अपने आपको भूल जाना, आत्मविस्मित / INTOXICATION
शब = रात, रात्रि, यामिनी, निशा / NIGHT
सहर = सुबह / MORNING
दौर-ए-ग़म = ग़म का दौर, दुखदाई समय /
PERIOD OF SORROW
PERIOD OF SORROW
मशवरा = राय, सलाह / CONSULTATION
दयार = इलाक़ा, क्षेत्र /
TERRITORY, REGION
TERRITORY, REGION
बंदिशों = रोक, प्रतिबंधों, रुकावटों /
STOPPAGE, CLOSURE
STOPPAGE, CLOSURE
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं"न फ़लक जमीं पर होता पांव है"
जवाब देंहटाएंये पंक्ति यादों के दौरान आदमी की हालत की सटीक व्याख्या है।
उम्दा रचना। लेकिन ये एक पंक्ति साथ लेकर जा रहा हूँ।
आभार।
आपकी अभिव्यक्ति का यह रूप भी कमाल का है आदरणीय रवींद्र जी।
जवाब देंहटाएं"दौर-ए-ग़म में भाता नहीं मशवरा"
कुछ पंक्तियाँ, कुछ रचनाएँ मन पर अंकित रह जाती हैं।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह! आदरणीय रविंद्र जी , प्रेम की यादो में आकंठ मगंन मन की समस्त अवस्थाओं की बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति। आज बहुत दिनों के बाद रचना को पढ़कर बहुत अच्छा लगा । ये रचना मेरे बहुत मनपसंद रचनाओं में से एक है।सादर , सस्नेह शुभकामनायें। 🙏🙏
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