अल्फ़ाज़ है कुछ माज़ी के
दिल कभी भूलता ही नहीं
नये-पुराने घाव भर गए सारे
दर्द-ओ-ग़म राह ढूँढ़ता ही नहीं।
उम्र भर साथ चलने का वादा है
अभी से लड़खड़ा गए हो क्यों ?
प्यास बुझती कहां है समुंदर-ए-इश्क़ में
साहिल पे आज आ गए हो क्यों ?
गर न हों फ़ासले दिल में
तो दूरियों की परवाह किसे
नग़मा-ऐ-वफ़ा गुनगुनाती हो धड़कन
तो सानेहों की परवाह किसे।
सबके अपने-अपने क़िस्से
अपने-अपने मेआर हैं
रंग बदलते ज़माने के
हम भी एक क़िरदार हैं।
सबके अपने-अपने क़िस्से
अपने-अपने मेआर हैं
रंग बदलते ज़माने के
हम भी एक क़िरदार हैं।
छूकर फूल को महसूस हुआ
हाथ आपका जैसे छुआ हो
रूह यों जगमग रौशन हुई
ज्यों रात से सबेरा हुआ हो।
#रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ / WORD MEANINGS
अल्फ़ाज़ = शब्द, शब्द समूह ( लफ़्ज़ का बहुवचन ) / WORDS
माज़ी = अतीत ,भूतकाल / PAST
दर्द-ओ-ग़म= दर्द और ग़म / PAIN AND SORROW
साहिल =समुद्री किनारा / SEA SHORE ,COAST
फ़ासले = दूरी / DISTANCE
सानेहों = त्रासदी (त्रासदियों ) / TRAGEDIES
मेआर= मानक / Standard , Yardsticks
मेआर= मानक / Standard , Yardsticks
रूह= आत्मा / SOUL ,SPIRIT
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