आज एक चित्र देखा नन्हे मासूम फटेहाल भाई-बहन किसी आसन्न आशंका से डरे हुए हैं और बहन अपने भाई की गोद में उसके चीथड़े हुए वसन थामे अपना चेहरा छुपाये हुए है -
अभावों के होते हैं ख़ूबसूरत स्वभाव,
देखती हैं नज़रें भाई-बहन के लगाव।
हो सुरक्षा का एहसास तो भाई का दामन ,
ढूंढ़ोगे ममता याद आएगा माई का दामन।
जीवन हमारा है बना दुःखों की चक्की,
पिसते रहेंगे सब चाहे हों लकी-अनलकी।
ज़माने से हम भी हक़ हासिल करेंगे,
आफ़त पे जीत बे-शक हासिल करेंगे।
है प्रभु का शुक्राना आज सलामत हैं हम,
किस लमहे की आख़िर ज़मानत हैं हम ?
#रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (10-12-2019) को "नारी का अपकर्ष" (चर्चा अंक-3545) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक सृजन |
जवाब देंहटाएंसादर