गुरुवार, 26 सितंबर 2019

रहते इंसान ज़मीर से मुब्तला



ये 
ऊँची 
मीनारें  
इमारतें 
बहुमंज़िला 
रहते इंसान 
ज़मीर से मुब्तला। 

वो 
बाढ़ 
क़हर 
न झोपड़ी 
न रही रोटी 
राहत फंड से 
कौन करेगा मौज. © रवीन्द्र सिंह यादव

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-09-2019) को    "महानायक यह भारत देश"   (चर्चा अंक- 3471)     पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  --हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. न झोपड़ी
    न रही रोटी
    राहत फंड से
    कौन करेगा मौज़।

    ये बातें जनता तक पहुँचाएगा कौन ?
    जो प्रबुद्धजनों से है दूर
    या बुद्धिजीवी वर्ग ही नहीं है उनके समीप ?
    भूख और श्रम के समक्ष जिन्हें नहीं पता कागजों पर लिखा ज्ञान ..।
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. मौज
    वही करेगा
    जो शक्तिमान है
    जिसका सिक्का चलता है
    जिसके इशारे सूरज निकलता है.

    जवाब देंहटाएं
  4. ये
    बातें
    बेकार
    जूं न रेंगे
    गांधी के कपि
    अवसरवादी
    जा भला करे राम।

    सार्थक पिरामिड ‌।

    जवाब देंहटाएं
  5. ये
    ऊँची
    मीनारें
    इमारतें
    बहुमंज़िला
    रहते इंसान
    ज़मीर से मुब्तला।... बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!!रविन्द्र जी ,बहुत उम्दा सृजन !



    जवाब देंहटाएं
  7. वाह बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. क़हर जिस पर बरपा वो रोए बाकी छीन कर खाने वाले तो फंड पर भी अपना हक़ समझेंगे।भला इन्हें किसी की तकलीफ से क्या?
    बहुत सटीक,सार्थक पिरामिड
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

अभिभूत

बालू की भीत बनाने वालो  अब मिट्टी की दीवार बना लो संकट संमुख देख  उन्मुख हो  संघर्ष से विमुख हो गए हो  अभिभूत शिथिल काया ले  निर्मल नीरव निर...