हम जानते हैं
दुनिया में भूख का साम्राज्य
युद्दों की देन है
फिर भी कुछ खाए-पिए-अघाए
युद्द कैसे हों
इस रणनीति पर
सोचते दिन-रैन हैं
पसरते पूँजी के पाँवों तले
दब गई है चीत्कार भूखों की
अब नहीं टोकती
प्रबुद्ध मानवता
युद्धोन्माद में डूबे दिमाग़ों को
विकृत सोच के हवाले
छोड़ दिया है दुनिया को!
©रवीन्द्र सिंह यादव