शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

चौकीदार


अपने चमन को हमने सँवारा  

बहाया पसीना सहेजे जज़्बात, 

रौनकों को नौंचने आ गई   

कौए और बाज़ की बारात।


पत्तियाँ हो रही थीं पल्लवित 

फूलों पर आ रहा था निखार, 

आ गये चरने-रौंदने बग़िया जानवर 

धर-धर अपनी-अपनी  बेरहम लात। 


रखवाली के लिए बैठाया 

एक अदद चौकीदार भी, 

लुटेरे करते रहे उसकी जय-जयकार

आत्ममुग्ध समझ न सका पते की बात। 


पूँजी का चरित्र 

लाभ में निहित है, 

नैतिकता की चर्चा 

अब करते रहो दिन-रात।   

© रवीन्द्र सिंह यादव

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

साँचा

मूल्य संवेदना संस्कार  आशाएँ  आकांक्षाएँ एकत्र होती हैं  एक सख़्त साँचे में  ढलता है  एक व्यक्तित्त्व उम्मीदों के बिना भी  जीते जाने के लिए द...