शनिवार, 24 मार्च 2018

बर्फ़


सुदूर पर्वत पर

बर्फ़ पिघलेगी

प्राचीनकाल से बहती

निर्मल नदिया में बहेगी

अच्छे दिन की

बाट जोहते 

किसान के लिए

सौग़ात बन जायेगी

प्यासे जानवरों का

गला तर करेगी

भोले पंछियों की 

जलक्रीड़ा में 

विस्तार करेगी 

लू के थपेड़ों की तासीर

ख़ुशनुमा करेगी

एक प्यासा बूढ़ा

अकड़ी अंजुरी में

भर पी जायेगा

जब बर्फ़ीला पानी

निकलेगी एक आह

कहते हुए -

आ रही है

मज़लूम  बर्फ़ 

रिहा होकर 

ज़ालिम के हाथ से

जा रही है 

विलय होने 

नदिया समुन्दर में 

अपना अस्तित्व खोने !

 बदलते रहेंगे मौसम 

फिर-फिर जमेगी बर्फ़ 

सजते रहेंगे ख़्यालात  

हर्फ़-दर-हर्फ़..!! 

#रवीन्द्र सिंह यादव 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...