शनिवार, 23 जून 2018

बरखा बहार (हाइकु)



तितली सोई- 
थी बरखा बहार  
गरजे मेघ 

टूटा सपना- 
तन्हाई थी बिखरी 
क्रुद्ध दामिनी 

चली पवन-
गजरा उड़ाकर 
 देने पिया को

काले बादल- 
होने लगे ओझल 
नाचे मयूर 

आना दोबारा-  
हों साथ जब पिया 
सुनो बहार 

© रवीन्द्र सिंह यादव    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...