बुधवार, 19 सितंबर 2018

हो सके तो मुझे माफ़ करना नम्बी!


समाचार आया है -
"इसरो के वैज्ञानिक को मिला 24 साल बाद न्याय"

न्याय के लिये दुरूह संघर्ष 

नम्बी नारायण लड़ते रहे चौबीस वर्ष 

इसरो जासूसी-काण्ड में 

पचास दिन जेल में रहे 

पुलिसिया यातनाओं के 

थर्ड डिग्री टॉर्चर भी सहे 

सत्ता और सियासत के खेल में 

प्रोफ़ेसर नम्बी पहुँचे सलाख़ों के पीछे 

क्रायोजेनिक इंजिन 

विकसित करने की दौड़ में 

देश चला गया वर्षों पीछे


1994 में ख़बर पढ़कर 

मेरा भी मन खिन्न हुआ था 

मीडिया के लिये वैज्ञानिक 

सनसनी का जिन्न हुआ था 

मीडिया का चरित्र  

प्रचार-प्रसार से जुड़ा है 

चरित्र हनन  से भी 

इसकी तिजोरी में पैसा जुड़ा है 

मीडिया ने 1994 में 

महान तन्मयता दिखाई थी 

2018 में अब क्यों है 

हालत खिसियाई-सी 

मैंने भी आपको 

तब गद्दार, देशद्रोही,लालची  

और जाने क्या-क्या समझा था 

काश! मीडिया आज 

उन सबको सच  बताता 

जिन्होंने वैज्ञानिक  को 

ग़लत समझा था

जाने कितने देशवासी 

ग़लतफ़हमी लिये 

स्वर्ग सिधार गये 

उनके अपने  कलंक की कालख 

धोते-धोते 

जीवनबोध का मर्म  हार गये   



जासूसी के आरोप लगे 1994 में

सीबीआई ने क्लीन चिट दी 1996 में 

सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया 1998 में 

मान-प्रतिष्ठा बहाली, मुआवज़े की

लम्बी लड़ाई का अंत 2018 में 



सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर

साज़िश की  जाँच होगी 

सम्बंधित अधिकारियों से 

50 लाख रुपये की बसूली होगी 

हम देखेंगे 

वैज्ञानिक प्रतिभा की 

हत्या की बात 

किसने अपने सर ली होगी 

स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजिन 

विकसित करने में हुई देरी से 

देश को हुई क्षति की 

भरपाई करेगा कौन 

विदेशी हाथ होने के 

ज़िक्र पर सब रहेंगे मौन 



क्रायोजेनिक इंजन 

टेक्नोलॉजी-ट्रांसफ़र समझौता 

हुआ 1992 में भारत-रूस के साथ 

अमेरिका ने धमकाया था 

बदहाल रूस को 

ख़ैरात के एहसान और 

एकध्रुवीय महाशक्ति 

होने के रसूख़ के साथ 

ज़रूरतमंद रूस ने 

क्रायोजेनिक तकनीक का 

समझौता किया था 

235 करोड़ रुपये में 

फ़्रांस तैयार था 

650 करोड़ रुपये में 

चतुर व्यापारी अमेरिका 

देना चाहता था 

950 करोड़ रुपये में 

दवाब में रूस ने 

पाँव पीछे खींचे 

सौदे के पर खींचे 

नम्बी नारायण ने 

स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन 

विकसित करने के 

तब ख़ाके खींचे 

5 जनवरी 2014 को 

क्रायोजेनिक इंजन का 

परीक्षण भारत में सफल हुआ 

अपना उल्लेख ख़बरों में  पाकर 

एक वैज्ञानिक भाव विह्वल हुआ   



एक वैज्ञानिक को 

इंसाफ़ मिलने में 

सदी का एक चौथाई 

समय ख़र्च होता है 

ग़रीब नागरिक तो 

ज़िंदगीभर इंसाफ़ के लिये 

एड़ियाँ रगड़ते हुए 

लाचारी का बोझ ढोता है 




हो सके तो 

मुझे माफ़ करना नम्बी

मेरा नाम भी 

उन गुनाहगारों की 

लम्बी फ़ेहरिस्त में शामिल है  

जो आपको 1994 में 

जी भरकर कोस रहे थे 

आपके भारतीय नागरिक होने पर 

मन भर मन मसोस रहे थे......... ! 



आपको सादर नमन नम्बी!  

जो आपने वक़्त की बेरुख़ी 

और मानसिक वेदना को 

निताँत ख़ामोशी से सहा 

अपने भोले  देशवासियों को 

कुछ नहीं कहा!! 

"रेडी टू फ़ायर" ने हमसे 

दिल दहलाती दास्तान का दर्द  

शिद्दत से कहा है !!! 

© रवीन्द्र सिंह यादव

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