शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2018

जंगल में आग



जंगल की राजधानी  में


अचानक 

शरद ऋतु में 

गर्मी बढ़ी

हुई हवा से 

नज़ाकत नमी नदारत 

साँसों में बढ़ती ख़ुश्की 

बहुत हलकान ज़िन्दगी 

झरे पीले पत्ते पेड़ों से 

घाम में घिसटती घास 

तपन से मुरझा गयी

गर्म हवा ने रुख़ किया 

अपने आसमान का 

दबाव क्षेत्र निर्मित हुआ 

ठंडी हवा गर्म हवा का 

ख़ाली स्थान भरने 

प्रचंड वेग से बही 

सुदूर से आती हवा 

तीव्र तूफ़ान बनी 

विशाल वरिष्ठ वृद्ध वृक्षों की 

वक्र शुष्क टहनियाँ 

बाँस के गगनचुम्बी झुरमुट 

रगड़ने लगे आपस में 

चिंगारियाँ लम्बी हुईं 

उड़ने लगे पलीते 

दहकने लगे शोले 

सूखी घास सहायक हुई

जंगल में फैल गयीं 

आक्रामक आग की लपटें 

छा गया धुआँ ही धुआँ हर सू 

मासूम वन्य जीव 

जलकर टोस्ट बन गये 

जंगल का राजा सोता रहा 

सुरक्षित महल-सी माँद में 

पर्याप्त भोज्य भंडार के साथ 

अधजले घायल प्राणी

निकाल रहे थे भड़ास 

अपने निकम्मे गुप्तचर तंत्र पर 

माँद में भरा धुआँ 

बढ़ी असहनीय तपिश 

तब खाँसते हुए 

वनराज बाहर आया 

कराहते प्राणियों की पीड़ा देख 

मन ही मन ख़ुश हुआ 

अगले पल भावी भोजन की

गहन चिंता में मग्न हुआ 

जंगली मीडिया फूला समाया 

देखकर अपने पापों के सबूत

जलकर राख होने की 

प्रबल सम्भावना पर 

सुलगते भयावह जंगल को देख 

सजग सक्रिय बुद्धिजीवियों ने 

चिंतन बैठक आयोजित की 

सरकार से हवाई बौछार का 

विनम्र आग्रह किया 

पर्यावरणप्रेमी आगे आये 

हरियाली के झंडे बैनर लिये।
  

 © रवीन्द्र सिंह यादव

6 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २९ अक्टूबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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    उत्तर

    1. सादर आभार आदरणीय ध्रुव जी रचना को लोकतंत्र सम्वाद मंच के पटल पर प्रदर्शित करने व पाठकों से परिचय कराने के लिये.

      हटाएं
  2. रवीन्द्र सिंह यादव जी, हमारे करुणा और दया से परिपूर्ण, प्रजा-वत्सल आक़ा पर इतना तीक्ष्ण व्यंग्य? आपको घोर पाप लगेगा.
    जल्दी से मिनरल वाटर से स्नान कर के अपने पाप धो डालिए (अब प्रदूषित गंगा जी बेचारी तो स्नान करने के लिए स्वयं इसी मिनरल-वाटर का उपयोग करती हैं.) और हमारे आक़ा की शान में एक फड़कता हुआ क़सीदा पढ़िए.

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    उत्तर
    1. सादर प्रणाम सर.
      हास्य पैदा करती आपकी टिप्पणी व्यंग के नये बिषय सुझा रही है. तारीफ़ को तरसने वाला व्यक्ति ठेके पर रखता है अपनी तारीफ़ करने वाले. आपके सानिध्य में रहकर हम जैसे कुछेक आलोचक अपने मन को इसी प्रकार संतुष्ट करते हैं. यह एक प्रकार की शरारत है कि कोई मिठाई से भरे थाल में तीखी हरी मिर्च रख दे.
      आपने अपनी टिप्पणी से पाठकों के लिये दिशा तय कर दी है.
      सादर आभार मनोबल बढ़ाने और व्याख्या प्रस्तुत करने के लिये.

      हटाएं
  3. बेहतरीन... करारा... तीक्ष्ण प्रहार आदरणीय
    और अंतिम पंक्ति “पर्यावरणप्रेमी आगे आये

    हरियाली के झंडे बैनर लिये।” की गहराई काबिल-ए-तारीफ़ है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत-बहुत आभार अमित जी प्रतिक्रिया लिखकर उत्साहवर्धन हेतु.

      हटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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