गुरुवार, 25 जुलाई 2019

करगिल विजय दिवस

वह 1999 का वर्ष था,

दोस्ताना अंदाज़ और अपार हर्ष था।  


जब अटल जी पहुँचे थे

दिल्ली से बस द्वारा लाहौर, 

दोस्ती की ख़ुशबू से 

महके थे दोनों देशों के ठौर। 


जब पींगें बढ़ी मित्रता की 

था फरवरी महीना,

पाकिस्तानी सेना को रास न आया 

दो मुल्कों का अमन से जीना। 


उधर धीरे-धीरे रच डाला  

साज़िश मक्कारी का खेल, 

साबित किया पाकिस्तान ने 

मुमकिन नहीं केर-बेर का मेल। 


अन्तरराष्ट्रीय समझौते की आत्मा रौंद 

घुसी पाकिस्तानी सेना चोरी से करगिल में, 

षडयंत्र का भंडाफोड़ हुआ तो 

टीस चुभी प्रबुद्ध मानवता के दिल में। 


3 मई से 26 जुलाई, 

चली हौसलों और बलिदान की भीषण लड़ाई। 

थल सेना ने जाँबाज़  गंवाकर सरज़मीं बचाई,  

दुश्मन से करगिल पहाड़ी ख़ाली करवायी। 


सर पर कफ़न बाँधकर

रण में कूदे थे भारत माँ के लाल,

दुश्मन को धूल चटाकर 

किया गर्वोन्नत हर भारतवासी का भाल। 


शत्रु  बैठा था रणनीति बनाकर, 

पर्याप्त ऊँचाई पर बंकर बनाकर। 

भारत माँ ने 527 प्यारे सपूत गँवाये, 

लिपटे हुए तिरंगे में सरहद से घर आये। 


सरहद की माटी में मिल गये 

प्रतीक्षा के सारे सिंदूरी सपने,

राखी, कंगन, तिलक रह गये 

बसकर बेबस यादों में अपने।  
  

क़ुर्बानी की ज्योति बनकर 

सीमा पर जो उजियारा है,

डटे रहो हे सैनिक दमभर 

शत-शत  नमन हमारा है।        

©रवीन्द्र सिंह यादव 




7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-07-2019) को "करगिल विजय दिवस" (चर्चा अंक- 3408) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 26 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सरहद की माटी में मिल गये

      प्रतीक्षा के सिंदूरी सपने,

      राखी, कंगन, तिलक रह गये

      यादों में बसकर प्यारे अपने। ...
      वाह! अश्रुपूरित नमन! वीर शहीदों को।

      हटाएं
  4. तुम को नमन हमारा है ।
    बहुत सुंदर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. शत्रु बैठा था रणनीति बनाकर,
    पर्याप्त ऊँचाई पर बंकर बनाकर।
    भारत माँ ने 527 प्यारे सपूत गँवाये,
    लिपटे हुए तिरंगे में सरहद से घर आये।
    बहुत ही लाजवाब ऐतिहासिक काव्य सृजन..
    बहुत ही हृदयस्पर्शी...
    वीर शहीदों को शत शत नमन...

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...