तिमिर भय ने
बढ़ाया है
उजास से लगाव,
ज्ञानज्योति ने
चेतना से जोड़ा
तमस का
स्वरूपबोध और चाव।
घुप्प अँधकार में
अमुक-अमुक वस्तुएँ
पहचानने का हुनर,
पहाड़-पर्वत
कुआँ-खाई
नदी-नाले
अँधेरे में होते किधर?
कैसी साध्य-असाध्य
धारणा है अँधेरा,
अहम अनिवार्यता भी है
सृष्टि में अँधेरा।
कृष्णपक्ष की
विकट अँधियारी रातें,
काली घटाओं में घिरा चाँद
पृथ्वी पर अस्थायी तम के हेतु हैं।
भीरुता से जुड़ा अँधेरा
विद्या बुद्धि बल से भगाने में
दिन-रात जुटे हैं हम,
सृष्टि में अँधकार का
अस्तित्त्व क्यों है?
उसे आलोचने के बजाय
एक दीप जलाकर
समझ सकते हैं हम।
© रवीन्द्र सिंह यादव
बढ़ाया है
उजास से लगाव,
ज्ञानज्योति ने
चेतना से जोड़ा
तमस का
स्वरूपबोध और चाव।
घुप्प अँधकार में
अमुक-अमुक वस्तुएँ
पहचानने का हुनर,
पहाड़-पर्वत
कुआँ-खाई
नदी-नाले
अँधेरे में होते किधर?
कैसी साध्य-असाध्य
धारणा है अँधेरा,
अहम अनिवार्यता भी है
सृष्टि में अँधेरा।
कृष्णपक्ष की
विकट अँधियारी रातें,
काली घटाओं में घिरा चाँद
पृथ्वी पर अस्थायी तम के हेतु हैं।
भीरुता से जुड़ा अँधेरा
विद्या बुद्धि बल से भगाने में
दिन-रात जुटे हैं हम,
सृष्टि में अँधकार का
अस्तित्त्व क्यों है?
उसे आलोचने के बजाय
एक दीप जलाकर
समझ सकते हैं हम।
© रवीन्द्र सिंह यादव