शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

अभागी चीख़ में सिसकता परिवेश


अरे!

यह क्या ?

अराजकता में झुलसता मेरा देश,

अभागी चीख़ में सिसकता परिवेश।


सरकारी शब्दजाल ने

ऊबड़खाबड़ घाटियों में धकेला है,

शहर-शहर विरोध का

महाविकट स्वस्फूर्त रेला है,

होंठ भींचे मुट्ठियाँ कसते 

बेरोज़गार नौजवान

कोई मुँह छिपाकर देशद्रोही

जलाता अपना ही प्यारा देश,

अभागी चीख़ में सिसकता परिवेश।


रक्षकों को भक्षक बनते देख रहा हूँ,

गुनाहगार को सरपरस्ती मिलते देख रहा हूँ,

नेताओं को ज़हर उगलते देख रहा हूँ,

दुष्ट ने धारण किया है

भलेमानस का नक़ली वेश,

अभागी चीख़ में सिसकता परिवेश।


दबाने के लिये विरोधी-स्वर

केस ही केस दर्ज़ करती सरकार

औरतों के बदन से खसोट लेगी जेवर

बच्चों के मुँह से कौर

कुछ वकीलों के हो जायेंगे

सफ़ेद से गहरे काले केश

अभागी चीख़ में सिसकता परिवेश।


मानवता के मख़ौल में

खीज नहीं तरस आता है,

देखिए!

चरित्र-निर्माण का भव्य भवन

अब कितना खोखला नज़र आता है,

नफ़रत के तह-ख़ानों में

बैठे हैं सियासतदाँ

इनको भाता सड़कों पर

बहता ख़ून और क्लेश

अभागी चीख़ में सिसकता परिवेश।


दमन दहशत दुर्भावना से

जी नहीं भरता सत्ताधीशों का,

अपने लबादे में रखते हैं ख़ंजर छिपाकर

क़त्ल होता नागरिक के नाज़ुक अरमानों का

गुम है रहबर कहीं बेचारे मासूम शीशों का,

धनपति पाखंडी अवसरवादी

जमकर लूट रहे हैं देश,

अभागी चीख़ में सिसकता परिवेश।

© रवीन्द्र सिंह यादव
    

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 28 दिसम्बर 2019 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८ -१२-२०१९ ) को "परिवेश" (चर्चा अंक-३५६३) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!!रविन्द्र जी , बहुत खूब!
    अराजकता में झुलसता मेरा ....
    पता नहीं कब तक ?

    जवाब देंहटाएं
  4. दुख और आक्रोश से लबरेज सृजन ,सादर नमन सर

    जवाब देंहटाएं
  5. देशभक्त औ शान्ति-पुजारी पर इल्ज़ाम न धरना,
    दुर्घटना यदि हो भी जाए तुम कोई आह न भरना.
    चैन-अमन है, ख़ुश-हाली है और है भाई-चारा,
    आग लगे या लाश गिरे, पर तुम चिंता मत करना.

    जवाब देंहटाएं
  6. सामयिक हालात का सांगोपांग वर्णन।
    हृदय स्पर्शी सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत आक्रोश भरी रचना।सटीक और सामयिक

    जवाब देंहटाएं
  8. अपने आक्रोश को बाखूबी लिखा है आपने ...

    जवाब देंहटाएं
  9. मुँह फेरकर

    उदास चाँद ने ओढ़ ली है

    कुहाँसे की घनी चादर,

    bahut khoobsurat pankityaan lgii ye....


    bhaawo ko rang de man ke utaar cadaaw ko khoob rngaa he..bdhaayi
    yuhn hi likhte rhe ..thanx for sharing

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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