शनिवार, 12 दिसंबर 2020

विरह वेदना

 नाविक नैया खेते-खेते 

तुम चले गए उस पार 

बाट तुम्हारी हेरे-हेरे 

थके नयन गए हार

बादल ठहरे होंगे कहीं 

कहे क्षितिज की रेखा 

संध्या का सफ़र शुरू होगा 

हो न सकेगा अनदेखा

नदी शांत है आ जाओ 

होगा मटमैला पानी

सांध्य-दीप साथ जलाना 

होगी परिपूर्ण कहानी। 

© रवीन्द्र सिंह यादव 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 13 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. सांध्य दीप जलाने को आतुर हृदय...वाह बहुत खूब ल‍िखा रवींद्र जी ..वाह

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