उमसभरी दोपहरी गुज़री
शाम ढलते-ढलते
हवा की तासीर बदली
ज्यों आसपास बरसी हो बदली
ध्यान पर बैठने का नियत समय
बिजली गुल हुई आज असमय
मिट्टी का दीया
सरसों का तेल
रुई की बाती
माचिस की तीली
उत्सुक मुनिया के नन्हे हाथ
सबने मिलकर जलाई ज्योति पीली
सरसराती शीतल पवन बही
दीये की लौ फरफराती रही
हवा से जूझती रही लौ
दिल की धड़कन हुई सौ
ध्यान लौ पर हुआ केन्द्रित
आई माटी की गंध सुगंधित
दीया ढक दिया काँच के गिलास से
दीया जलता रहा हुलास से
अनुकूल समय बीत रहा था
दीये का दम घुट रहा था
अचानक घुप्प अँधेरा
मैंने मुनिया को टेरा
मोबाइल-टॉर्च जली तो देखा
दीये में तेल भी बाती भी...भाल पर संशय की रेखा
निष्कर्ष के साथ मुनिया बोली-
"ऑक्सीजन ख़त्म होने से बुझ गया है चराग़।"
मेरे ह्रदय ने सुना विज्ञान का नीरस राग।
©रवीन्द्र सिंह यादव
न जाने ऑक्सीजन किस किस के लिए कम होने वाली । मर्मस्पर्शी रचना ।
जवाब देंहटाएंकल रथ यात्रा के दिन " पाँच लिंकों का आनंद " ब्लॉग का जन्मदिन है । आपसे अनुरोध है कि इस उत्सव में शामिल हो कृतार्थ करें ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 12 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
बहुत सुंदर भावपूर्ण तथा समसामयिक यथार्थ का संदर्भ,बहुत शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसामयिक जीवन के समस्याओं को उजागर करती प्रभावशाली रचना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंऑक्सीजन जरुरी है जीवन के लिए, इसके बिना अँधेरा घिर आता है पल भर में
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(०४-०८-२०२१) को
'कैसे बचे यहाँ गौरय्या!'(चर्चा अंक-४१४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
"ऑक्सीजन ख़त्म होने से बुझ गया है चराग़।"
जवाब देंहटाएंमेरे ह्रदय ने सुना विज्ञान का नीरस राग। बहुत ही गहरी कविता है आपकी। इतनी खूबसूरती से आपने आज का सच बयां कर दिया। गहनतम लेखन।
ओह।
जवाब देंहटाएंमुनिया कितनी गहरी बात कह गई शाश्वत सी।
अप्रतिम सृजन।
कठोर हकीकत बयान करती हुई ये रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां