बुधवार, 25 मई 2022

समय का वज्र

 व्यथा का तम 

और कितना 

सघन होगा? 

अँधेरे-उजाले के मध्य 

प्रतीक्षा के पर्वत के छोर पर 

कब प्रभात के तारे का 

सुखद आगमन होगा?  

लोक-मानस में 

अधीरता के आयाम 

इतिहास की उर्वरा माटी पर 

संप्रति 

कोई  तो

सर्जना के संवर्धन की 

तबीयत समझ    

लिखता जा रहा है

बहारों की आहट

अभी दूर है 

वक़्त को यही मंज़ूर है

इस कठोरता को 

रेखांकित कर दिया गया है। 

© रवीन्द्र सिंह यादव




  


23 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! सुंदर। आशा अमर है, जिसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती।

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    1. सादर आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए.

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  2. कठोरता को केवल रेखांकित करने से क्या हासिल होगा?
    सत्तासीनों ने तो कठोरता, निर्ममता और क्रूरता को तो पहले ही अपने पत्थर जैसे दिलों में बसा लिया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर नमन सर.
      लोक-कल्याण का मिशन मनवांछित लक्ष्य की उपलब्धियों के भँवर में उलझ गया है.

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  3. आशा और विश्वास बनाए रखना होगा ।चिंतनपूर्ण रचना ।

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    1. सादर आभार आदरणीया जिज्ञासा जी मनोबल बढ़ाने के लिए।

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  4. बेहतरीन अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  5. बहारों की आहट
    अभी दूर है
    वक़्त को यही मंज़ूर है
    इस कठोरता को
    रेखांकित कर दिया गया है। ////
    बहारें आयेंगी जरुर !आशा जीवन का सबसे बड़ा संबल है।सुन्दर प्रस्तुति रवींद्र जी पता नहीं क्यों आपकी रचना मेरी रीडिंग लिस्ट में नहीं दिखाई देती???🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी। आपकी विस्तृत व्याख्या के साथ टिप्पणी सदैव उत्साहवर्धन करती है। आप मेरे ब्लॉग को एक बार Unfollow कीजिए फिर Follow कीजिए तो संभव है रीडिंग लिस्ट में सूचना प्रदर्शित होने लगेगी।

      हटाएं
  6. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 31 मई 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  7. सादर आभार आदरणीया बहन जी। 'पाँच लिंकों का आनन्द' ब्लॉग पर रचना प्रदर्शित होना ब्लॉगर को उत्साहित करता है।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहारों की आहट

    अभी दूर है

    वक़्त को यही मंज़ूर है

    हम कितना ही प्रयास कर लें जो वक़्त को मंजूर हो वही होता है । गहन सृजन ।

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  9. कहीं एक नन्हा आशा का दीपक तो जल रहा है।
    बहारें ज़रूर आएगी।
    सुंदर सृजन।

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  10. वज्राघात की पीड़ा और आशा का मुखर स्वर.....

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  11. वाह! बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

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  12. व्यथा का तम

    और कितना

    सघन होगा?

    अँधेरे-उजाले के मध्य

    प्रतीक्षा के पर्वत के छोर पर

    कब प्रभात के तारे का

    सुखद आगमन होगा?
    बस इसी प्रतीक्षा में आँखे थक रही हैं पर व्यथा का ये तम अब मिटेगा जरूर।
    बहुत ही सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  13. आदरणीय सर आपकी लेखनी को सर्वप्रथम नमन - वंदन। वर्तमान का यह घनघोर अंधकार निश्चित ही मन को व्यथित करने वाला है किंतु इस अंधकार के आगे एक सुंदर भोर होगी इस विश्वास के साथ आशा का दीप जलाकर मनुष्य को कर्मठ रहकर लोक कल्याण के लिए सृजनरत रहना चाहिए, कर्मरत रहना चाहिए।

    आशा की डोर थमा धीरज धरने का संदेश देती बहुत सुंदर पंक्तियाँ।

    वर्तमान की आवश्यकता है आपकी यह पंक्तियाँ। आभार सहित सादर प्रणाम आदरणीय सर 🙏

    जवाब देंहटाएं
  14. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-7-22} को "सफर यूँ ही चलता रहें"(चर्चा अंक 4500)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  15. सुन्दर भावों से सम्पन्न चिन्तनपरक सृजन ।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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