नीले फूलों लदी
गर्वीली गुलमेहंदी
की
मोहक मुस्कान
मानसिक थकान को
सोख न सकी
तब
तिरस्कार की चुभन
तीव्र करती
श्वेत सुमन के साथ
इतराने लगी जूही
अंततः
केसरिया पुष्प धारण किए
आत्मविस्मृत
एकाकीपन में गुम गेंदे ने
उपेक्षा की दहलीज़ पर
स्वयं को समर्पित किया
क्षितिज पर दृष्टि गढ़ाए
कोई बढ़ गया आगे
कोमल फूलों को कुचलता हुआ!
किसी ने देखा...
मासूम महकता फूल
अनिच्छा से मिट्टी में मिलता हुआ?
© रवीन्द्र सिंह यादव
ओह , सोचने पर मजबूर करती रचना
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
लाचार स्तब्ध देख रहे सभी
जवाब देंहटाएंबैचैन करती रचना
मन को मथती अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंअद्भुत बिम्ब लिए सोचने पर मजबूर करती कृति ।
जवाब देंहटाएंचिन्तन परक सृजन ।
जवाब देंहटाएंऐसी संवेदनहीनता ही हिंसा को जन्म देती है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह!!
जवाब देंहटाएंअनुज रविन्द्र जी ,मन को अंदर तक झकझोर गई आपकी रचना ।
जवाब देंहटाएंउफ्फ...बेहद मार्मिक पंक्तियाँ। इन पुष्पों के माध्यम से आपने यह सत्य उजागर कर दिया कि हम मनुष्यों की संवेदना सुप्तावस्था में है। इन सुप्त संवेदनाओं को झकझोर कर जगाने का प्रयास करती आपकी इन पंक्तियों को और आपको मेरा सादर प्रणाम आदरणीय सर।🙏
जवाब देंहटाएंजो बदकिस्मत इस जनम में कुचले जाते हैं वो अगले जनम में भी कुचले जाने के लिए पैदा होते हैं और जो अपने इस जनम में लोगों को कुचलते हैं वो अगले जनम में भी आक़ा बनने के लिए ही अवतरित होते हैं.
जवाब देंहटाएंफूलों के माध्यम से बहुत गहरा संदेश देती कविता
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंअद्भुत बिम्बों के साथ बहुत ही हृदयस्पर्शी
जवाब देंहटाएंविचारणीय सृजन ।