तपकर तीव्र तपिश में
अपने सम्मोहनयोद्धा की
सभा से लौटे
हारे-थके पंछी
कुछ देर के लिए
छायादार वृक्षों की शरण में
ठहर गए हैं
सभा की सीख
सभा से लौटे
हारे-थके पंछी
कुछ देर के लिए
छायादार वृक्षों की शरण में
ठहर गए हैं
सभा की सीख
और संदेश का पुनःस्मरण
अब बहस में बदल गया है
स्मृतिलोप और नाकारापन ने
भावी भय के भयावह सपने ने
विवेक कुंद कर डाला है
सहिष्णुता के सत्व को सुखाकर
आक्रामक और हिंसक
अब बहस में बदल गया है
स्मृतिलोप और नाकारापन ने
भावी भय के भयावह सपने ने
विवेक कुंद कर डाला है
सहिष्णुता के सत्व को सुखाकर
आक्रामक और हिंसक
हो जाने का उकसावा
अस्तित्व बचाने के लिए दे डाला है
अपनी ही प्रजा का
अस्तित्व बचाने के लिए दे डाला है
अपनी ही प्रजा का
शिकार करनेवाले सिंह का
मजबूरन महिमामंडन
चींटियों की
चींटियों की
सामूहिक एकता का खंडन
समाज को
समाज को
ग़ुलाम बनाए रखने के
चालाक उपक्रमों पर मंथन
जल के
चालाक उपक्रमों पर मंथन
जल के
वैकल्पिक स्रोतों का अन्वेषण
भावनात्मक आदर्शों का
भावनात्मक आदर्शों का
चतुर संप्रेषण
हवा के सदियों पुराने स्वरुप को
बहाल करने की चिंताएँ
अपने-अपने संवैधानिक गणराज्य
स्थापित करने की चर्चाएँ
अपने-अपने नशेमन की ओर
उड़ान भरने से पहले पंछी
वैज्ञानिक शिक्षा पर
हवा के सदियों पुराने स्वरुप को
बहाल करने की चिंताएँ
अपने-अपने संवैधानिक गणराज्य
स्थापित करने की चर्चाएँ
अपने-अपने नशेमन की ओर
उड़ान भरने से पहले पंछी
वैज्ञानिक शिक्षा पर
विमर्श करने लगे
हालाँकि आज उन्हें
हालाँकि आज उन्हें
स्वादिष्ट भोजन
सभा-स्थल पर ही
सभा-स्थल पर ही
छककर खाने को मिला था
पंछियों की निरर्थक चिंतन-बहस से
पंछियों की निरर्थक चिंतन-बहस से
जीभर उकताकर
वृक्ष की छाया में बैठी बूढ़ी गाय
रूखी-सूखी घास चरने
वृक्ष की छाया में बैठी बूढ़ी गाय
रूखी-सूखी घास चरने
घाम से जलते खेत में चली गई।
© रवीन्द्र सिंह यादव
© रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन ,मर्म स्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंपंछियों को सभा में भाषण सुनने का मेहनताना मिला होगा. बेचारी बूढ़ी गाय को ऐसे काम का कोई मेहनताना नहीं मिला होगा, इसलिए वह खेत में घास चरने चली गयी होगी.
जवाब देंहटाएंसम्मोहनयोद्धा पर मुग्ध पंछियों के लिए स्वाभिमान, आदर्श और विवेक जैसे शब्दों का अब कोई अर्थ नहीं है। इन्हें अब संघर्ष के दानों में स्वाद नहीं आता अपितु छल की दावत में रस मिलता है। इन बहसों को तो भोली-भाली गाय क्षणभर रुककर सुन लेती है। छल से उसका पेट नहीं भरेगा अतः वह संघर्ष पथ पर अग्रसर है। रूखी-सूखी ही सही,उसे संतोष है।
जवाब देंहटाएंप्रतीकों के माध्यम से वर्तमान परिस्थितियों पर सटीक पंक्तियाँ प्रस्तुत करती आपकी लेखनी को प्रणाम 🙏
उत्तम कृति👌
सादर प्रणाम। सुप्रभात।
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी..
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ अगस्त २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
गंभीर स्वाद
जवाब देंहटाएंसादर
दुर्दिन समय की विडम्बनाओं को कितने प्रभावी और अर्थपूर्ण तरीके से उकेरा है
जवाब देंहटाएंप्रकृति के बीच उपज रहे हलाकान जीवन और मानसिक आघात का
अद्भुत चित्रण
कमाल का शब्दविन्यास
इस महत्वपूर्ण रचना के बधाई
शब्द-शब्द हृदय को छूता। गहन भाव लिए सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंन जाने समय ने कैसा व्यूह रचा है। जहाँ नज़र डालो वही पीड़ा पसरी पड़ी है काटो तो खून नहीं।
बहुत सुंदर मार्मिक सृजन।
सादर
पक्षियों के माध्यम से आज की दशा और दिशा दोनों पर समग्र दृष्टि डाली है । गहनतम सृजन ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२९-०८ -२०२२ ) को 'जो तुम दर्द दोगे'(चर्चा अंक -४५३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सामयिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअत्यंत गंभीर अर्थों को समेटे यह एक लाजवाब रचना है। सादर।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
जवाब देंहटाएंgreetings from malaysia
द्वारा टिप्पणी: muhammad solehuddin
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