नवोदित पीढ़ी
कुछ दशकों बाद
पहचान लेगी
उसके दिल में
नफ़रत और हिंसा के बीज
किसने रोपे थे
उसके भविष्य के लिए
देश-विदेश में
काँटे किसने बोए थे
तब तक
हमारे हृदय की तरह
गंगा के तट
और सिकुड़ चुके होंगे...
और प्रौढ़ पीढ़ी के लोग
शर्म से निरुत्तर
नज़रें झुकाए खड़े होंगे।
© रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार १४ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी नमस्ते,
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पांच लिंकों का आनंद पर...
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सादर
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जी नमस्ते,
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आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
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आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना बुधवार १४ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत ख़ूब कहा है तुमने मित्र !
जवाब देंहटाएंहमारी 16 रील की फ़िल्मों में खलनायक 15 रील तक मज़े करता है और हीरो को पीटता रहता है और आख़री रील में जा कर मारा जाता है.
भारतीय लोकतंत्र में तो खलनायक के मरने के तीस साल बाद ही उसका कच्चा-चिटठा खोला जा सकता है और तभी उसकी राजनीतिक मौत भी होती है.
तो इस कहानी से हमको यह सबक मिलता है कि जब तक है कुर्सी, तब तक लूट-मार में लगे रहो.
व्वाहहहहहहहहह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
सादर
बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंविचारणीय
जवाब देंहटाएंइतिहास गवाह रह्ता है हर सम सामयिक विकृति का।भावी पीढियाँ आँकेगी आज का इतिहास।सार्थक रचना आदरनीय रवींद्र जी।सादर 🙏
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