युगों-युगों में
समय के साथ
समाज सभ्य हुआ
सुसंस्कृत होने की प्रवृत्ति का
सतत क्षय हुआ
आज अवांछित अभिलाषाओं का
अनमना आलोक
अभिशप्त यंत्रणा के
अंधड़ में ढल गया है
भव्यता,भौतिकता के
विस्तार का बीज
लालच के गर्भ में पल रहा है
विवेकहीन मस्तिष्क
भावविहीन ह्रदय
क्षत-विक्षत भावनाओं का
अंबार लादे
बैल-सा जुते रहने की
मंत्रणा कर
सो गए हैं
आस्तीन का सॉंप डसेगा
तंद्रा टूटेगी
तब तक
समय रेत-सा फिसलकर
भावी पीढ़ियों की
आँखों की किरकिरी बन चुका होगा!
© रवीन्द्र सिंह यादव
आदरणीय सर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंभयावह भविष्य की ओर उन्मुख इस सभ्य,सुसंस्कृत होने का झूठा गर्व करने वाले समाज को सावधान करती आपकी यह कविता सराहनीय तो है ही साथ ही वर्तमान की आवश्यकता भी है।
आज जब मनुष्य की संवेदनाएँ नष्ट हो गई हैं,विवेक सुप्तावस्था में है तब भविष्य के प्रति यह भय उचित ही है।
आज यह अंधकार कल की तबाही की तैयारी में चुपके से लगा है। खेद है कि आज जब आपकी लेखनी अंधकार के इस रहस्य को उजागर करते हुए अपना कर्तव्य निभा रही है तब बहुत से लेखक और कवि लेखनी को घिस-घिस कर कोठी-बंगला तैयार करने में लगे हैं। कोई बात नहीं लगे रहें,समय सबका हिसाब करेगा। आपकी कर्मनिष्ठ लेखनी को प्रणाम 🙏
आने वाला समय हूबहू ऐसा ही होगा शायद ..भाव होगे न भावनाएं.....। नमन है आपकी लेखनी को अनुज ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०३-१० -२०२२ ) को 'तुम ही मेरी हँसी हो'(चर्चा-अंक-४५७१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०३-१० -२०२२ ) को 'तुम ही मेरी हँसी हो'(चर्चा-अंक-४५७१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
शाइनिंग इंडिया के बारे में ऐसी निराशाजनक बातें?
जवाब देंहटाएंसंस्कृति और धर्म का चहुमुखी विकास हो रहा है.
नई पीढ़ी को लाठी-भाला-बंदूक-बम संस्कृति में ढाला जा रहा है.
रही सांप के डसने की बात तो वो बेचारा अगर किसी धर्म-रक्षक को डसेगा तो वो ख़ुद फ़ौरन राम जी को प्यारा हो जाएगा.
दीपावली की शुभकामनाएं। सुन्दर प्रस्तुति व अनुपम रचना।
जवाब देंहटाएंसृष्टि का चक्र निरंतर गतिमान रहता है, न जाने कितनी बार मानव ने ऊँचाइयाँ छू ली हैं और कितनी बार पतन के गर्त में गिरा है, किसी अदम्य शक्ति से संचालित हो रहा है यह जगत, जो अवांछनीय है वह झर जाएगा और श्रेष्ठ रह जाएगा, हमें प्रकाश पर नज़र रखनी है छायाओं पर नहीं
जवाब देंहटाएंसुंदर श्रजन
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