गुनगुनी अलसाई धूप में
चील की कर्कश चीत्कार
सुन रहे हैं मासूम कान
विष वमन करते सर्पों को देख
घर होता जा रहा है मकान
कोमल मन पर घृणा के घाव देने
खुल रही है दुकान-दर-दुकान
कैसे जीएगा नन्हा मेमना जीभर
घेरे खड़ा है भेड़िया, चेहरे पर लिए कुटिल मुस्कान?
© रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत बढियां 👌👌
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