बालू की भीत बनाने वालो
अब मिट्टी की दीवार बना लो
संकट संमुख देख
उन्मुख हो
संघर्ष से विमुख हो गए हो
अभिभूत शिथिल काया ले
निर्मल नीरव निर्झर के मार्ग में
हे शिल्पी!
शिलाखंड पर कब से बैठे हो
उठो! मुक्ति-मार्ग संशय से मिलता तो
हर भटके राही को मंज़िल की क्यों फ़िक्र हो!
करो प्रहार हथौड़ा हाथ है
सुगढ़ मूर्ति साकार हो!
©रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ सम्मुख
1. बालू = रेत, बालुका , Sand
2. भीत = भित्ति , दीवार , Wall
3. सम्मुख = सामने, आगे , समक्ष
4. उन्मुख = ऊपर की ओर ताकता हुआ, उत्कंठा से देखता हुआ
5. विमुख = मुँह फेरना, अलग होना, जिसके मुँह न हो, मुखरहित
6. अभिभूत = हारा हुआ , पराजित
7. शिथिल = ढीला-ढाला, थका हुआ,