सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

ख़्यालों का सफ़र

अल्फ़ाज़ है कुछ माज़ी के 

दिल कभी भूलता ही नहीं

नये-पुराने घाव भर गए सारे  

दर्द-ओ-ग़म राह ढूँढ़ता ही नहीं। 



उम्र भर साथ चलने का वादा है 

अभी से लड़खड़ा गए हो क्यों ?

प्यास बुझती कहां है समुंदर-ए-इश्क़ में 

साहिल पे आज आ गए हो क्यों ?



गर  न  हों  फ़ासले  दिल में   

तो दूरियों की परवाह किसे

नग़मा-ऐ-वफ़ा गुनगुनाती हो धड़कन

तो सानेहों की परवाह किसे। 



सबके अपने-अपने क़िस्से 

अपने-अपने  मेआर हैं 

रंग  बदलते  ज़माने  के 

हम  भी  एक  क़िरदार हैं। 



छूकर फूल को महसूस हुआ 

हाथ आपका जैसे छुआ हो 

रूह यों जगमग रौशन हुई

ज्यों रात से सबेरा हुआ हो। 

#रवीन्द्र सिंह यादव     

शब्दार्थ / WORD MEANINGS 
अल्फ़ाज़ = शब्द, शब्द समूह  ( लफ़्ज़ का बहुवचन ) / WORDS 

माज़ी = अतीत ,भूतकाल / PAST 

दर्द-ओ-ग़म= दर्द और ग़म / PAIN AND SORROW 

साहिल =समुद्री किनारा / SEA SHORE ,COAST  

फ़ासले = दूरी / DISTANCE 

सानेहों = त्रासदी (त्रासदियों ) / TRAGEDIES 

मेआर= मानक / Standard , Yardsticks 

रूह= आत्मा / SOUL ,SPIRIT 


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