साहित्य समाज का आईना है। भाव, विचार, दृष्टिकोण और अनुभूति का आतंरिक स्पर्श लोकदृष्टि के सर्जक हैं। यह सर्जना मानव मन को प्रभावित करती है और हमें संवेदना के शिखर की ओर ले जाती है। ज़माने की रफ़्तार के साथ ताल-सुर मिलाने का एक प्रयास आज (28-10-2016) अपनी यात्रा आरम्भ करता है...Copyright © रवीन्द्र सिंह यादव All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
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वाह
जवाब देंहटाएंहै
जवाब देंहटाएंरक्त
पिपासु
खेले-खेल
अमरबेल
प्राण हर कर
अबोध-सा मुस्काये
रवींद्र जी,अलहदा विषय पर बेहतरीन लेखन।
और तस्वीरें ख़ासकर बेहद अच्छी हैं..👌👌
बहुत खूब ....
जवाब देंहटाएंशब्द चित्र है ये रचना ... पर जीवी होना ... क्लोरोफिल होना ... गज़ब की प्रयोगात्मक रचना ...
विज्ञान और साहित्य का संगम ...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (07-11-2019) को "राह बहुत विकराल" (चर्चा अंक- 3512) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब... बेहतरीन तस्वीरों से सजी सुंदर रचना ,सादर नमन सर
जवाब देंहटाएंमैं
जवाब देंहटाएंतो हूँ
घोषित
परजीवी
आतिथेय से
हासिल पोषण
झेलूँ दोषारोपण... बेहतरीन सृजन आदरणीय
सादर