गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

दो लहरों के बीच

 सोती नदी में 

एक लहर उठी 

किनारे पर आकर 

रेत पर एक नाम लिखकर थम गई 

दूसरी लहर 

किनारे से मिलने चली 

रेत पर लिखा नाम 

न कर सका और विश्राम

पहली लहर के कलात्मक श्रम को पानी में मिला दिया। 

© रवीन्द्र सिंह यादव

14 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-10-2020) को "मन आज उदास है" (चर्चा अंक-3849) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

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  2. बहुत ही सुंदर सर फिर एक नई लहर उठेगी और एक नया नाम लिख जाएगी।ज़िंदगी कुछ ऐसा ही फ़लसफ़ा गढ़ती है।
    सहज सरल प्रवाह लिए सुंदर सृजन।

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  3. गजब!
    बहुत सुंदर क्षणिका ।

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 20 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. आदरणीय सर ,
    बहुत ही सुन्दर और गहरी रचना। सुंदर तरीके क्षण- भंगुरता और परिवर्तनशीलता को दर्शाया है। इसे पढ़ कर मुझे श्रीमद्भगवद्गीता का वह प्रसंग याद आ गया जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा " संसार में सबकुछ अस्थायी और परिवर्तन के अधीन है, केवल परिवर्तन ही शाश्वत है। सुन्दर रचना हृदय से आभार व् आपको सादर नमन।
    आपसे अनुरोध है कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आएं। आपके प्रोत्साहन एवं आशीष के लिए आभारी रहूंगी। मैं ने आपके ब्लॉग को फॉलो कर लिया है , अब यहाँ समय निकाल कर आपकी रचनाएँ पढ़ने के लिए आती रहूंगी। पुनः सादर नमन ।

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  6. आपने तो गागर में सागर भर दिया आदरणीय सर। जीवन का एक कटु सत्य इतनी सहजता से आपने पंक्तिबद्ध कर दिया। बहुत सुंदर 👌सादर प्रणाम आदरणीय सर 🙏

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  7. पिछली सरकार की योजनाओं पर पानी फेर कर ही नई सरकार नई योजनाएं बनाती है.

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  8. जीवन की कटु सच्चाई बहुत सुंदर शब्दों में बयान की है आपने।

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आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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