तुम्हारे लिए
कोई
चुल्लूभर पानी
लिए खड़ा है
शर्म हो
तो डूब मरो...
नहीं तो
अपनी गिरेबाँ में
बार-बार झाँको
ज़रा सोचो!
तुम्हारी करतूत
इतिहास का
कौनसा अध्याय
लिख चुकी है?
पीढ़ियाँ
जवाब देते-देते ऊब जाएँगीं।
© रवीन्द्र सिंह यादव
साहित्य समाज का आईना है। भाव, विचार, दृष्टिकोण और अनुभूति का आतंरिक स्पर्श लोकदृष्टि के सर्जक हैं। यह सर्जना मानव मन को प्रभावित करती है और हमें संवेदना के शिखर की ओर ले जाती है। ज़माने की रफ़्तार के साथ ताल-सुर मिलाने का एक प्रयास आज (28-10-2016) अपनी यात्रा आरम्भ करता है...Copyright © रवीन्द्र सिंह यादव All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
चित्र साभार: सुकांत कुमार SSJJ एक हरी डाल पर फूल और काँटा करते रहे बसर फूल खिला, इतराया अपने अनुपम सौंदर्य पर काँटा भी नुकीला हुआ, सख़्त...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-11-2020) को "आवाज़ मन की" (चर्चा अंक- 3882) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
-- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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वाह क्या बात है शानदार रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली लेखन - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह रवीन्द्र जी... लाजवाब रचना है
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