शुक्रवार, 19 मार्च 2021

विकास और भारत


याद करो 

पिछले पचास वर्ष 

हम 

इतने स्वकेन्द्रित तो नहीं थे

मानसिकता के धरातल पर 

जहाँ आज हैं 

तब इतने तो नहीं थे  

दुनिया 

विकास करती रही

परमाणु बम बनाने की 

अंधी दौड़ चलती रही 

भौतिकता के विस्तार में

संवेदनाविहीन हुई

व्यक्ति की पाशविक कुंठा 

उत्तरोत्तर विकसित हुई 

भूख की चिंता 

अब व्यर्थ का चिंतन है

हथियारों की होड़ में 

लुट रहा धन है   

भारत ने 

वर्ण-व्यवस्था का 

निरर्थक विकास किया 

और वर्गों में बँटी 

दुनिया में 

कुछ आगे हुआ 

तो कहीं 

बहुत पीछे रह गया 

व्यवस्था बदलने आए 

'तीस मार ख़ान' 

'बंदर के हाथ लगी मशाल'

कहावत चरितार्थ करते रहे। 

© रवीन्द्र सिंह यादव

7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार 20 मार्च 2021 को शाम 5 बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

    जवाब देंहटाएं
  2. ये समस्या आज की तो नहीं है । बस पहले ये दिखती नहीं थी आज सामने भी वही ला रहे जिन्होंने इसको बढ़ावा दिया ।केवल अपने लाभ हेतु । चाहे वो धर्म के नाम पर या वर्ण व्यवस्था के नाम पर ।
    बस आम जनता छली जा रही ,
    विचारणीय रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  3. संवेदनशील विषय ।
    सब की अपनी सोच।

    जवाब देंहटाएं
  4. गंभीर विषय लिए बहुत ही सुंदर रचना , सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  5. सार्थक रचना जो समसामयिक अव्यवस्थाओ पर चिंतन करती रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय रवींद्र जी🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. विकास के सबके अपने मापदंड हैं... मनुष्यता और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीने को जो प्रेरित करे फिलहाल उसी विकास मोडल की जरूरत है....

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...