मत लिखो कि सरकार
भ्रष्ट है
मत लिखो कि
निरीह जनता
सरकारी नीतियों से त्रस्त है
मत लिखो कि
धूर्त पाखंडी
उन्माद के बीज बो रहे हैं
मत लिखो कि
युवा षड्यंत्र के मोहरे हो रहे हैं
मत लिखो कि
न्याय सहज सुलभ नहीं है
मत लिखो कि
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब नहीं है
मत लिखो कि
व्यवस्था सड़-गल गई है
मत लिखो कि
सत्ता संवेदना को मसल गई है
मत लिखो कि
ऑक्सीजन के अभाव में बच्चे मर रहे हैं
मत लिखो कि
दंगाई संरक्षण में हरी घास चर रहे हैं
मत लिखो कि
क़ानून का पालन मनमाना हो रहा है
मत लिखो कि
भूख से व्याकुल इलाक़ा रो रहा है
मत लिखो कि
शोषण के सूत्र शातिर दिमाग़ों की पूँजी है
मत लिखो कि
शिक्षा में मनगढंत विषयों को लाने की क्यों सूझी है
मत लिखो कि
117 दिन से किसान आंदोलनरत क्यों हैं?
मत लिखो कि
सरकारी संपत्तियाँ ख़रीदनेवालों संग
सरकारी उँगलियाँ मित्रवत क्यों हैं?
मत लिखो कि
दलों को चंदा कैसे मिल रहा है?
मत लिखो कि
आदमी का ईमान कैसे हिल रहा है?
मत लिखो कि
गवाह डराए धमकाए ख़रीदे जा रहे हैं
मत लिखो कि
पेड़ क्यों काटे जा रहे हैं?
लिखो कि
समय का सच
अचर्चित रहकर गुज़र जाने का हामी है
स्वतंत्रता खोकर जीवन जीना तो बस नाकामी है!
© रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-03-2021 को चर्चा – 4,016 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
बहुत ही सुंदर रचना रविंद्र जी, ढेरों बधाई हो, आपको,
जवाब देंहटाएंगहरे तक व्यथित मन की संवेदनशील अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ मत लिखो , फिर भी बिना लिखे तो नहीं ही रह सकते ।
जवाब देंहटाएंबहुत सी बातों की तरफ इंगित किया है लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है जो पर्दे के पीछे है ।
विचारणीय रचना
अति मारक एवं चिंतनीय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंजो क़लम से कोई उकेरना नहीं चाहता।
समय की आवाज़ कोई दबा नहीं सकता।
बधाई एवं शुभकामनाएँ सर।
वर्तमान परिस्थिति पर वज्रपात करती कविता, वास्तविकता को उजागर करती है, निर्भीक व प्रभावशाली लेखन साधुवाद सह, सभी पंक्तियाँ बेमिशाल हैं।
जवाब देंहटाएंअचर्चित रहकर गुज़र जाने का हामी है
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता खोकर जीवन जीना तो बस नाकामी है! बहुत खूब रवींद्र भाई। लिखना जोखिम तो चाटुकारिता यत्र तत्र सर्वत्र व्याप्त है। सादर