जंगली जीवन से उकताकर
समाज का सृजन किया
समाज में स्वेच्छाचारी स्वभाव के
नियंत्रण का विचार और इच्छाशक्ति
सामाजिक नियमावली लाई
नैतिकता की समझ भी आई
सामाजिक मूल्यों की सुधि आई
ज्ञान,न्याय,समता,विकास,स्वतंत्रता
और दंड पर बहस हुई
क़ानून का प्रावधान स्वीकार हुआ
राजा बादशाह से होते हुए
जनसेवक का विचार लोकतंत्र लाया
लोगों ने सोचा अब उन्हें जीना आया
लोकतंत्र में कब तानाशाही आ गई
आज़ादी / अभिव्यक्ति जब नियंत्रित हुई
तब होश आया
लालच और भय की दुदुंभी की गूँज में
चतुर-चालाक वर्ग को
सत्ता और पूँजी के साथ खड़ा पाया
तो क्या आज़ादी के लिए
फिर जंगली हुआ जाय?
या संयमी और समझौतावादी हुआ जाय...?
© रवीन्द्र सिंह यादव
विचारणीय आलेख , संयम और समझौतावादी होने से जीवन सरल होता है
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04.03.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
प्रभावशाली निर्भीक लेखन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसब कुछ लौट कर ही आता है । शायद जीवन भी उसी ओर लौट रहा हो ।
जवाब देंहटाएंइस समय के सच को उजागर करती प्रभावी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंराम-राज्य हो या जंगल-राज !
जवाब देंहटाएंदोनों में शक्तिशाली, निर्दोष किन्तु कमज़ोर को, अपराधी बता कर उसे चट कर जाता है.
विचारणीय पंक्तियाँ हैं यह आदरणीय सर। आपकी लेखनी समाज के विचारों के नई दिशा दे रही है। बारंबार प्रणाम आपकी लेखनी और आपको 🙏
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