मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

रंजिशों के साथ

सपनों की 

भव्य अट्टालिकाओं को 

ढह जाना होता है

नयनों में उमड़े 

दर्दीले आँसुओं को 

बस बह जाना होता है

उपवन के सौंदर्य में लवलीन

रसिक मन को 

काँटों का चुभना 

सह जाना होता है

चन्द्रिका बिखर जाती है 

अँधेरी राहों को 

रौशन करने 

तब 

जुगनुओं के दिल को 

रंजिशों के साथ 

कृष्णपक्ष तक 

चुप रह जाना होता है।  

© रवीन्द्र सिंह यादव

    

18 टिप्‍पणियां:

  1. धीरज धरिए मेरे मना !
    कभी तो अपने दिन बहुरेंगे !

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  2. भावपूर्ण रचना जिसमें मन की आकुल व्याकुल मन की सार्थक अभिव्यक्ति 🙏💐🌹💐💐🙏

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  3. 🙏🌹🌹🤗
    समस्त साहित्य प्रेमियों को हिन्दू नववर्ष, संवत 2078, मिति चैत्र बदी, प्रतिपदा, नवदुर्गा प्रारंभ और बैसाखी की अनन्य शुभकामनाएं💐🙏👏🏼🌸🥀🌺🌷🌹🍁🇮🇳

    🙏🙏**माँ दुर्गा स्तुति**🙏🙏

    पधारो! आँगन आज माँ!
    ममतामयी, मंगलकरनी,
    सकल संवारों काज
    रोग, शोक,दुःखहरनी!
    रिद्धि- सिद्धि की तुम खान
    सर्व सुखों की दाता,
    बढ़ाओ प्रेम व्यवहार
    तुम्हीं जग भाग्य विधाता!
    ****रेणु***

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  4. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-04-2021) को
    "वन में छटा बिखेरते, जैसे फूल शिरीष" (चर्चा अंक- 4038)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर रचना

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  6. वाह!अनुज रविन्द्र जी ,बहुत खूबसूरत भाव समेटे हुए ,बेहतरीन सृजन ।

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  7. सपना है तो टूटेगा ही, वरना कोई कभी जगे ही न, आँसूं हैं तो बहेंगे ही, वरना कोई प्रीत करे ही न, चाँदनी है तो बिखरेगी ही वरना कोई चाँद उगे ही न और फूल है तो कंटक मिलेंगे ही वरना वह खिले ही न ! सुंदर सृजन !

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  8. जुगनुओं के दिल को
    रंजिशों के साथ
    कृष्णपक्ष तक
    चुप रह जाना होता है।

    लाजवाब अभिव्यक्ति....
    बहुत सुंदर....🌹🙏🌹

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  9. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन सर।
    सादर

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  10. बहुत ही मार्मिक सृजन आदरणीय सर,सादर नमन

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  11. आदरणीय सर, आज बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ। सद्य की तरह सशक्त व यथार्थ पूर्ण रचना के लिए हृदय से आभार । सच है जबसच्चा प्रकाश होता है तो झूठे प्रकाश का दिखावा नहीं चलता । एक पूर्ण के सामने आ जाने पर और अपूर्ण व्यक्तियों के मन में रंजिश या जाना स्वाभाविक ही है । पुनः आभार एवं आपको प्रणाम ।

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  12. सुंदर अति सुंदर अब यही सच है कि कृष्ण पक्ष भी कितना जरूरी है ।
    शुक्ल सभी को रास नहीं आता।
    अद्भुत सृजन।

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  13. धूप छांव भरे जीवन रूपी भावों का अनूठा सृजन ।

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  14. बहुत ही गहरी और सार्थक रचना , प्रकृति को दर्शाती हुई ये सृजन सुन्दर है
    आभार

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आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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