एक पौधा
रोपा गया
सबने दिया
खाद-पानी
सुरक्षा देने की
सबने ठानी
पोषित पौधा पल्लवित पुष्पित हुआ
विशाल वृक्ष में तब्दील हुआ
फलदार हुआ
फलों को पाने की आशा में
साधनहीन
नीचे खड़े-खड़े
रसीले फलों को
निहारते रहे
हवाई पहुँचवाले
क्रेन आदि लाए
साथ सुरक्षा भी लाए
सारे फल तोड़ ले गए
साधनविहीन शोर मचाते रह गए।
© रवीन्द्र सिंह यादव
आज की व्यवस्था पर प्रतिकात्मक सटीक प्रहार करती रचना।
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति।
सच कहा साधन विहीन शोर मचाते रह गए
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा👌
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,
जवाब देंहटाएंसाधनहीन को यहाँ कौन पूछता है, परिवार में ही कोई निर्धन रह जाए तो अन्य उसका सम्मान नहीं करते
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२०-११-२०२१) को
'देव दिवाली'(चर्चा अंक-४२५४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आज के परिदृष्य का यथार्थवादी का चित्रण ।
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