मंगलवार, 12 अक्तूबर 2021

साधन-संपन्न और साधनहीन

एक पौधा 

रोपा गया 

सबने दिया 

खाद-पानी

सुरक्षा देने की 

सबने ठानी 

पोषित पौधा पल्लवित पुष्पित हुआ

विशाल वृक्ष में तब्दील हुआ 

फलदार हुआ 

फलों को पाने की आशा में 

साधनहीन 

नीचे खड़े-खड़े 

रसीले फलों को 

निहारते रहे 

हवाई पहुँचवाले 

क्रेन आदि लाए

साथ सुरक्षा भी लाए  

सारे फल तोड़ ले गए

साधनविहीन शोर मचाते रह गए।   

© रवीन्द्र सिंह यादव 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आज की व्यवस्था पर प्रतिकात्मक सटीक प्रहार करती रचना।
    गहन अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  2. सच कहा साधन विहीन शोर मचाते रह गए

    जवाब देंहटाएं
  3. साधनहीन को यहाँ कौन पूछता है, परिवार में ही कोई निर्धन रह जाए तो अन्य उसका सम्मान नहीं करते

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२०-११-२०२१) को
    'देव दिवाली'(चर्चा अंक-४२५४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. आज के परिदृष्य का यथार्थवादी का चित्रण ।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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