रविवार, 24 दिसंबर 2023

बादल को बरस जाना है

चित्र: महेन्द्र सिंह 

दो गर्वोन्नत अहंकारी बादल

बढ़ा रहे थे असमय हलचल 

मैंने भी देखा उन्हें

नभ में  

घुमड़ते-इतराते हुए

डराते-धमकाते हुए

आपस में टकराए  

बरस गए

बहकर आ गए 

मेरे पाँव तले

नदी की ओर बह चले

लंबा सफ़र तय करेंगे 

सागर में जा मिलेंगे।  

 ©रवीन्द्र सिंह यादव      

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शुक्रवार 11 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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