दो गर्वोन्नत अहंकारी बादल
बढ़ा रहे थे असमय हलचल
मैंने भी देखा उन्हें
नभ में
घुमड़ते-इतराते हुए
डराते-धमकाते हुए
आपस में टकराए
बरस गए
बहकर आ गए
मेरे पाँव तले
नदी की ओर बह चले
लंबा सफ़र तय करेंगे
सागर में जा मिलेंगे।
©रवीन्द्र सिंह यादव
साहित्य समाज का आईना है। भाव, विचार, दृष्टिकोण और अनुभूति का आतंरिक स्पर्श लोकदृष्टि के सर्जक हैं। यह सर्जना मानव मन को प्रभावित करती है और हमें संवेदना के शिखर की ओर ले जाती है। ज़माने की रफ़्तार के साथ ताल-सुर मिलाने का एक प्रयास आज (28-10-2016) अपनी यात्रा आरम्भ करता है...Copyright © रवीन्द्र सिंह यादव All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
सत्य की दीवार उनका निर्माण था कदाचित उन्हें सत्य के मान का भान रहा होगा सरलता और सादगी का जीवन उनकी पहचान रहा होगा मिथ्या वचन,छल,पाखंड,क्...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शुक्रवार 11 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर
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