बादलों की प्रतीक्षा में
अनिमेष अनवरत ताकते हुए
वृक्ष में क्या परिवर्तित हुआ?
ऋतुओं का संधिकाल आते-आते
सूख गए हरित-पीत पत्ते,
कुम्हलाए कोमल किसलय
मुरझा गए सुकोमल सुमनालय
व्याकुलता बढ़ती रही छाल की
काया क्षीण हुई विशाल वृक्ष की
वक़्त का क्या गया
बस स्मृतियों का ख़ज़ाना बढ़ गया
एक वार्षिक वलय और बढ़ गया
मिला कोई घट गया
पानी हवा से हट गया
लू के थपेड़े झेलकर
गुलमोहर खिल उठा
विपरीत मौसम में
कौन किससे रूठा?
©रवीन्द्र सिंह यादव