बुधवार, 1 अक्टूबर 2025

युद्ध और भूख

हम जानते हैं 

दुनिया में भूख का साम्राज्य 

युद्दों की देन है 

फिर भी कुछ खाए-पिए-अघाए 

युद्द कैसे हों 

इस रणनीति पर 

सोचते दिन-रैन हैं

पसरते पूँजी के पाँवों तले 

दब गई है चीत्कार भूखों की 

अब नहीं टोकती 

प्रबुद्ध मानवता 

युद्धोन्माद में डूबे दिमाग़ों को

विकृत सोच के हवाले  

छोड़ दिया है दुनिया को!

©रवीन्द्र सिंह यादव 


शनिवार, 19 जुलाई 2025

साँचा

मूल्य

संवेदना

संस्कार 

आशाएँ 

आकांक्षाएँ

एकत्र होती हैं 

एक सख़्त साँचे में 

ढलता है 

एक व्यक्तित्त्व

उम्मीदों के बिना भी 

जीते जाने के लिए

दुनिया के ज़ख़्मों पर 

नेह का लेप लगाने के लिए

यह सहज साँचा 

हमने अब खो दिया है 

भौतिकता के अंबार में 

बहुत नीचे दब गया है।   

©रवीन्द्र सिंह यादव 

 

गुरुवार, 1 मई 2025

वक़्त और काया

बादलों की प्रतीक्षा में 

अनिमेष अनवरत ताकते हुए 

वृक्ष में क्या परिवर्तित हुआ?

ऋतुओं का संधिकाल आते-आते 

सूख गए हरित-पीत पत्ते, 

कुम्हलाए कोमल किसलय 

मुरझा गए सुकोमल सुमनालय

व्याकुलता बढ़ती रही छाल की  

काया क्षीण हुई विशाल वृक्ष की 

वक़्त का क्या गया 

बस स्मृतियों का ख़ज़ाना बढ़ गया

एक वार्षिक वलय और बढ़ गया 

मिला कोई घट गया 

पानी हवा से हट गया

लू के थपेड़े झेलकर 

गुलमोहर खिल उठा 

विपरीत मौसम में 

कौन किससे रूठा?  

©रवीन्द्र सिंह यादव 

 

गुरुवार, 20 मार्च 2025

सत्य की दीवार


सत्य की दीवार 

उनका निर्माण था

कदाचित उन्हें 

सत्य के मान का भान रहा होगा

सरलता और सादगी का जीवन 

उनकी पहचान रहा होगा

मिथ्या वचन,छल,पाखंड,क्रूरता,अन्याय और दंभ

तब उस पवित्र दीवार से 

परे ही रहे होंगे

नकारात्मक मूल्यों की गंध पर 

विवेक की पंखुड़ियों का 

सतत सख़्त पहरा रहा होगा

कालांतर में क्षरण हुआ 

सजगता और 

सत्य के प्रति आग्रह का   

छल अति क्षुधित पाषाण-सा 

टकराता रहा सत्य की दीवार से 

अंततः दीवार क्षतिग्रस्त हुई 

और बन गए झरोखे ही झरोखे

पतित मूल्यों के 

उस प्राचीन दीवार में... 

©रवीन्द्र सिंह यादव       

      

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