मूल्य
संवेदना
संस्कार
आशाएँ
आकांक्षाएँ
एकत्र होती हैं
एक सख़्त साँचे में
ढलता है
एक व्यक्तित्त्व
उम्मीदों के बिना भी
जीते जाने के लिए
दुनिया के ज़ख़्मों पर
नेह का लेप लगाने के लिए
यह सहज साँचा
हमने अब खो दिया है
भौतिकता के अंबार में
बहुत नीचे दब गया है।
©रवीन्द्र सिंह यादव