सत्य की दीवार
उनका निर्माण था
कदाचित उन्हें
सत्य के मान का भान रहा होगा
सरलता और सादगी का जीवन
उनकी पहचान रहा होगा
मिथ्या वचन,छल,पाखंड,क्रूरता,अन्याय और दंभ
तब उस पवित्र दीवार से
परे ही रहे होंगे
नकारात्मक मूल्यों की गंध पर
विवेक की पंखुड़ियों का
सतत सख़्त पहरा रहा होगा
कालांतर में क्षरण हुआ
सजगता और
सत्य के प्रति आग्रह का
छल अति क्षुधित पाषाण-सा
टकराता रहा सत्य की दीवार से
अंततः दीवार क्षतिग्रस्त हुई
और बन गए झरोखे ही झरोखे
पतित मूल्यों के
उस प्राचीन दीवार में...
©रवीन्द्र सिंह यादव