बुधवार, 1 अक्टूबर 2025

युद्ध और भूख

हम जानते हैं 

दुनिया में भूख का साम्राज्य 

युद्दों की देन है 

फिर भी कुछ खाए-पिए-अघाए 

युद्द कैसे हों 

इस रणनीति पर 

सोचते दिन-रैन हैं

पसरते पूँजी के पाँवों तले 

दब गई है चीत्कार भूखों की 

अब नहीं टोकती 

प्रबुद्ध मानवता 

युद्धोन्माद में डूबे दिमाग़ों को

विकृत सोच के हवाले  

छोड़ दिया है दुनिया को!

©रवीन्द्र सिंह यादव 


8 टिप्‍पणियां:

  1. अब नहीं टोकती
    प्रबुद्ध मानवता
    युद्धोन्माद में डूबे दिमाग़ों को
    सत्य कथन ! चिंतन परक सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  2. छोड दिया दुनियाँ को ,विकृत सोच के हवाले ...सही कहा अनुज ..पता नहीं ये उन्माद कहाँ पहुँच कर विश्राम करेगा ...

    जवाब देंहटाएं
  3. युद्ध और भूख शीर्षक ही मन के विचारों को झकझोर कर ध्यानाकर्षित करने करने के लिए काफी है। ये दो शब्द ऐसे हैं जिसका राजनीतिकरण सदैव अपनी सहूलियत के हिसाब से सत्ताधीशों के द्वारा किया जाता रहा है।
    बहुत अच्छी रचना।
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. जितना रोका टोका युद्धोन्माद बढ़ता ही गया ।
    अब बस देखो सीखो और फिर एक और युद्घ ...
    बहुत सटीक सामयिक सृजन।
    विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेनामी10/03/2025 12:49:00 pm

    सच कहूँ तो, तुमने बहुत सटीक तरीके से दिखाया है कि युद्ध सिर्फ़ गोलियों से नहीं, बल्कि भूख और दर्द से भी लड़ता है। जो लोग तृप्त हैं, वही युद्ध की नई रणनीतियाँ बनाते हैं, जबकि असली कीमत गरीब और भूखे लोग चुकाते हैं। सबसे चुभने वाली बात ये है कि अब मानवता भी चुप है, जैसे उसे आदत हो गई हो इस क्रूर खेल की।

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