सोमवार, 5 दिसंबर 2016

आज जलंधर फिर आया है...



आज  जलंधर फिर आया है


हाहाकार          मचाने   को 


अट्टहास   करता   है    देखो


अपना  दम्भ   दिखाने   को ...(1 )




अहंकार    के  आँगन  में 
    

त्रिदेवों  को  ललकार रहा   है ,


अनुनय- विनय  वचन   प्रार्थना  
  

सबको   ठोकर   मार   रहा   है। 
  

आज    बहुत चिंघाड़ रहा है 


बदला  -  भाव    दर्शाने     को ,




आज जलंधर फिर आया है


हाहाकार   मचाने   को।  ...(2 )







नेत्र तीसरा खुला था शिव का



ज्वाला   का   अम्बार   लगा

सागर  में  बरसी  ज्वाला तो 


पानी   को   भी   भार   लगा 


उपजा असुर जलंधर जग में 


भय   का   राग   सुनाने  को



आज  जलंधर फिर आया  है




हाहाकार  मचाने   को।...(3  )






आयोजन सागर- मंथन   का


सुर- असुर का साझा श्रम था 


रत्न   मिलेंगे   बाँट   बराबर 


असुरों  को  ऐसा  ही भ्रम था 


अमृत पर  संग्राम छिड़ा जब 


प्रकट  हुई  तब एक  मोहिनी



चालाकी     दिखलाने     को




आज जलंधर फिर  आया  है




हाहाकार  मचाने को।...(4 ) 





भेदभाव      से    अमृत   का

बंटबारा   होने    वाला     था 

भांप        गए        राहू-केतु  


पलभर  में बदला   पाला  था  


अमृतपान   किया   दोनों  ने 

भयमुक्त      हुए        असुर 


ग्रीवा   अपनी   कटवाने   को



आज   जलंधर  फिर आया है




हाहाकार  मचाने  को।... (5 )
       






आज   जलंधर  मांग  रहा है 


रत्न-सम्पदा     सारी    लूट 


अहंकार    के   दर्प  में  डूबा 


हर  बंधन  से  गया  है  छूट 


पार्वती    को   पाना     चाहे 


शिव   का  क्रोध  जगाने को 



आज  जलंधर फिर आया है





हाहाकार  मचाने को।...(6 )





दे दी इसको शिव ने शक्ति


विष्णु  ने भी झोली भर दी 


ब्रह्मा  ने  भी   वरदानों से 


इसकी   मंशा   पूरी कर दी 


त्राहि-त्राहि  की गूँज उठी है 


आत्ममुग्ध हो जुटा हुआ है  



मन   का  रूप  सजाने   को




आज जलंधर  फिर आया है




हाहाकार  मचाने  को।...(7 )





पतिवृत -धर्म     निभाने  वाली


इसकी      पत्नी      वृंदा      है


त्याग,  तपस्या   भार्या   की  है 


जिससे    अब    तक   ज़िंदा  है 


देने    अभयदान    सृष्टि     को
  

आये शिव रौद्र रूप दिखलाने  को



आज    जलंधर     फिर  आया है




हाहाकार  मचाने  को।...(8 )






विष्णु  ने  मायाजाल   रचा 

वृंदा   से   छल   करना  था 


जलंधर     की    मृत्यु   का


यक्ष-प्रश्न    हल   करना था 


वृंदा  को छल का भान  हुआ 


क्रोधित         हो    अकुलाई 



श्राप   के   बोल  सुनाने   को




आज  जलंधर  फिर  आया है




हाहाकार  मचाने  को।... 9   )






भीषण   महासंग्राम में  शिव ने 


आतातायी  का  वध  कर  डाला 


वृंदा   ने   अपने  तप  बल    से


विष्णु   को   पत्थर   कर  डाला 


नारद   अब   आकर  प्रकट  हुए 


बिगड़ी     बात    बनाने       को 



आज    जलंधर   फिर   आया है




हाहाकार   मचाने  को।... 10   )










वृंदा आज भी तुलसी बनकर

घर-घर  में   पूजी  जाती   हैं

शालिग्राम  बन   विष्णु   की 


श्रद्धा    से    पूजा    होती   है


रहे   जलंधर   ध्यान   हमारे 


युग-युग   को    समझाने को



आज   जलंधर  फिर आया है




हाहाकार  मचाने  को।...(11)








सहज     संतुलन   सृष्टि  का


रखने   को    विष्णु- लीला  है 

पीते -पीते   तीक्ष्ण     हलाहल

शिव- कंठ  अभी  तक नीला है

छल, दम्भ, झूठ, पाखण्ड सभी 

छाये   हैं    सत्य    दबाने    को 


आज   जलंधर   फिर  आया  है



हाहाकार   मचाने  को।... 12   )






उन्मादी   माहौल  में  दबकर 


कुछ   ऐसे   भी   न्याय  हुए 



मानवता   को  रौंद    डालने



शुरू    नए    अध्याय     हुए


अहंकार   के    अन्धकार  में 



आये  कोई   दीप  जलाने को




आज  जलंधर  फिर आया है


हाहाकार  मचाने को।... (13)


@रवीन्द्र सिंह यादव 

3 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१३ -१०-२०१९ ) को " गहरे में उतरो तो ही मिलते हैं मोती " (चर्चा अंक- ३४८७) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्कृष्ट सृजन रविन्द्र जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत शानदार प्रस्तुति।
    भावों का अपूर्व प्रवाह ।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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