बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

आया ऋतुराज बसंत




शिशिर   का    प्रकोप    ढलान   पर

आया  ऋतुराज  बसंत  दालान  पर

खेत-खलिहान  / बाग़-बग़ीचे

पीलिमा-लालिमा / हरीतिमा  का  सुरभित  आभामंडल,

आहिस्ता-आहिस्ता कपड़े सुखाती गुनगुनी  धूप

पुष्प-पत्तों  दूब-नलिका  ने  पहने  ओस  के  कुंडल।

सरसों    के    पीले    फूल

गेंहूँ-जौ   की  नवोदित  बालियाँ / दहकते  ढाक-पलाश,

आम्र-मंजरियों के सुनहले गर्वीले गुच्छ 

सृष्टि  का  सरस  सामीप्य  साकार सौंदर्य

मोहक  हो  पूरी  करता  मन  की  तलाश।

पक्षियों  का  कर्णप्रिय  कलरव,  

मानो  गा  रहा   कोई

रसमय राग  भैरव।


आ   गया   बसंत

अल्हड़  मन  पर  छा  गया  बसंत,

प्रकृति  के  प्रवाह   में

होता  नहीं   कोमा  या  हलंत।  


उत्सव   मनाओ  क़ुदरती  मेलों  में

  जीओ  सजीव  सार्थक  बसंत,  

पोस्टर, कलेंडर, फिल्मांकन, अंतरजाल  में

हम  ढूँढ़ते  हैं  आभासी  अनमना निर्जीव  बसंत।

@रवीन्द्र  सिंह यादव
 
                         






रवीन्द्र  सिंह यादव

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-02-2020) को    "आया ऋतुराज बसंत"   (चर्चा अंक - 3602)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं
  2. पोस्टर, कलेंडर, फिल्मांकन, अंतरजाल में

    हम ढूँढ़ते हैं आभासी अनमना निर्जीव बसंत

    सत्य कहा.... ,बेहतरीन सृजन ,सादर नमन आपको


    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

अभिभूत

बालू की भीत बनाने वालो  अब मिट्टी की दीवार बना लो संकट संमुख देख  उन्मुख हो  संघर्ष से विमुख हो गए हो  अभिभूत शिथिल काया ले  निर्मल नीरव निर...