शनिवार, 28 अप्रैल 2018

न्याय-तंत्र ही माँगे न्याय...

लोकतंत्र का एक खम्भा 
कहलाती न्याय-व्यवस्था, 
न्याय-तंत्र ही माँगे न्याय
    आयी कैसी जटिल अवस्था।    
इंसाफ़ के लिए 
वर्षों से 
लाचार 
जनता तड़पती देखो,  
वर्चस्व के लिए 
अब आपस में  
न्याय-व्यवस्था 
झगड़ती देखो।
सत्ता और 
न्याय-व्यवस्था में 
दोस्ती और 
साँठगाँठ का अनुमान,
गुज़रेगा यह 
दुश्वारियों का दौर भी  
फ़ैसले करेंगे दूर 
फ़ुतूर और गुमान।

#रवीन्द्र सिंह यादव 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...