जीते-जीते
जीवन-शैली विकसित हुई
शव को सम्मान
मिलने की बात तय हुई
आज करोना-काल में
सघन या छितराई
लाशों की भीड़
तलाश रही है
अंत्येष्टि की गरिमा से भरा नीड़
भीड़ की भरमार में
लकवाग्रस्त तंत्र
भेज रहा है
एक ही घर में
एक ही व्यक्ति की
दो-दो बार लाशें!
कोई भटक रहा है
कई-कई दिन
लेने अपनों की लाशें
लाशों का हिसाब
बार-बार बिगड़ रहा है
कोई दफ़्तर-दफ़्तर
एड़ियाँ रगड़ रहा है
कहीं दाह-क्रिया / दफ़नाने का
उपेक्षित सरकारी रबैया
कहीं अविश्वास की नाव में
बैठे हैं यात्री और खिबैया
कचरा-गाड़ी पर शव...!
यह कैसा वक़्त का विप्लव!
करोना-योद्धाओं का कैसा
चिंतनीय विभव-पराभव
कुछ तो भर चुके हैं
ग़ुस्से से लबालब
वर्जनीय-ग्रहणीय निर्देशों के बवंडर
बढ़ा रहे हैं रोज़-रोज़ संशय और डर
देख-सुन करोना महामारी का
कसता शिकंजा
हृदय कचोट रहा है
कोई निर्मम ऐसा भी है
जो धन लूट-खसोट रहा है
दुनियाभर में लाशों की दुर्दशा के
हृदयविदारक समाचार
कब तक देखेंगीं आँखें बार-बार?
एक अदृश्य दुश्मन से
भयातुर है भीरु इंसानी दुनिया
मास्क मुँह पर हाथों में दस्ताने
अनचीह्नी-सी हो गई है
करोना-काल की दुनिया
बदली आब-ओ-हवा में
नया रण-क्षेत्र हो गई है दुनिया।
© रवीन्द्र सिंह यादव
जीवन-शैली विकसित हुई
शव को सम्मान
मिलने की बात तय हुई
आज करोना-काल में
सघन या छितराई
लाशों की भीड़
तलाश रही है
अंत्येष्टि की गरिमा से भरा नीड़
भीड़ की भरमार में
लकवाग्रस्त तंत्र
भेज रहा है
एक ही घर में
एक ही व्यक्ति की
दो-दो बार लाशें!
कोई भटक रहा है
कई-कई दिन
लेने अपनों की लाशें
लाशों का हिसाब
बार-बार बिगड़ रहा है
कोई दफ़्तर-दफ़्तर
एड़ियाँ रगड़ रहा है
कहीं दाह-क्रिया / दफ़नाने का
उपेक्षित सरकारी रबैया
कहीं अविश्वास की नाव में
बैठे हैं यात्री और खिबैया
कचरा-गाड़ी पर शव...!
यह कैसा वक़्त का विप्लव!
करोना-योद्धाओं का कैसा
चिंतनीय विभव-पराभव
कुछ तो भर चुके हैं
ग़ुस्से से लबालब
वर्जनीय-ग्रहणीय निर्देशों के बवंडर
बढ़ा रहे हैं रोज़-रोज़ संशय और डर
देख-सुन करोना महामारी का
कसता शिकंजा
हृदय कचोट रहा है
कोई निर्मम ऐसा भी है
जो धन लूट-खसोट रहा है
दुनियाभर में लाशों की दुर्दशा के
हृदयविदारक समाचार
कब तक देखेंगीं आँखें बार-बार?
एक अदृश्य दुश्मन से
भयातुर है भीरु इंसानी दुनिया
मास्क मुँह पर हाथों में दस्ताने
अनचीह्नी-सी हो गई है
करोना-काल की दुनिया
बदली आब-ओ-हवा में
नया रण-क्षेत्र हो गई है दुनिया।
© रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१४- 0६-२०२०) को शब्द-सृजन- २५ 'रण ' (चर्चा अंक-३७३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सटीक समय के अनुरूप।
जवाब देंहटाएंसही कहा नया रणक्षेत्र हो गयी है दुनिया...
जवाब देंहटाएंकरोना से लड़ना भी युद्ध से कम नहींं लाशों का ये सच भी इतिहास ही रचा रहा है इस बार....
सटीक समसामयिक सृजन।
सच कहा बहुत बड़े परिवर्तन का समय है,
जवाब देंहटाएंमहामारी की विभीषिका का दारूण कटु सत्य प्रकट करती रचना।
जवाब देंहटाएंसटीक समय के अनुरूप।
जवाब देंहटाएंमास्क मुँह पर हाथों में दस्ताने
हटाएंअनचीह्नी-सी हो गई है
करोना-काल की दुनिया
कटु सत्य