शनिवार, 20 जून 2020

मैं उसका पिता हूँ / लघुकथा

         पूरे ज़िले में विज्ञान की पढ़ाई के लिए ज़िला मुख्यालय में पुराने राजशाही महल की इमारत में एकमात्र सरकारी कॉलेज था। समीर शहर में रहकर पढ़ाई करने पिछले महीने ही गाँव से आया था। वह उस दिन पंद्रह मिनट पहले कॉलेज के लिए निकला था। उसे अपने दाएँ पैर के जूते की मरम्मत करवानी थी जिसकी नोंक पर सिलाई उधड़ रही थी। 
        लगभग चालीस की उम्र पार कर चुका सुखलाल ग्राहक की प्रतीक्षा में व्याकुल था। इस बीच एक सप्ताह पुराने अख़बार की हैडिंग पढ़ने की कोशिश कर रहा था। पढ़ने में समीर ने मदद की। हैडिंग थी-
"श्रीलंकाई नौसैनिक ने परेड का निरीक्षण करते हुए प्रधानमंत्री राजीव गाँधी पर बंदूक की बट से किया हमला!"
       दतिया के क़िला-तिराहे पर सड़क-किनारे उसके नन्हे-से कार्यस्थल पर जब समीर की साइकिल रुकी तो सुखलाल की आँखों में ग्राहक को देखकर चमक आ गई। समीर ने जूता उतारा और जेब से रुमाल निकालकर माथे का पसीना पोंछते हुए दाएँ पैर के अँगूठे से जूते के बीमार हिस्से की ओर इशारा करते हुए कहा-
"यहाँ मजबूत सिलाई करना।"
"मतलब?"
सुखलाल ने ग़ुस्से से समीर को देखा।
"आपको क्रोध क्यों आ रहा है?"
"कॉलेज जा रहे हो?"
"हाँ"
साइकिल में आगे हेंडिल पर लगे कैरियर पर चिपके स्टूडेंट-बैग को देखकर सुखलाल ने पूछा-
"किस क्लास में पढ़ते हो?"
"बी.एस-सी.प्रथम वर्ष।"
"तुम्हारा नाम?"
"समीर"
"राकेश को जानते हो?"
"हाँ, मेरी ही क्लास में है।"
"मैं उसका पिता हूँ, पढ़ाई में उसकी मदद करना। बहुत मुश्किल से उसे इस क्लास तक पहुँचाया है। ये दो रुपये उसे दे देना। पाँच मिनट पहले ग़ुस्सा होकर कॉलेज चला गया, जेब-ख़र्च माँग रहा था। कहना कि केंटीन से कुछ लेकर खा ले।"
सुखलाल ने आग्रहपूर्वक आद्रभाव से कहा। 
जूते की सिलाई पूरी हुई। तय दाम चुकाते हुए समीर ने मासूमियत से पूछा-
"आपने शुरू में मुझे ग़ुस्से से क्यों घूरा?"
"अपनी रोज़ी को कोई लज्जित होता हुआ नहीं देखता, आपका पैर के अँगूठे से इशारा करके बताना मुझे अच्छा नहीं लगा।"
"सॉरी अंकल।"
कहता हुआ समीर साइकिल के पैडल पर पाँव रखता है और गंभीर होकर स्वाभिमान-अभिमान, विश्वास-अविश्वास;रोज़ी के प्रति श्रेष्ठता का भाव आदि पर चिंतन करता हुआ कॉलेज पहुँच जाता है।

© रवीन्द्र सिंह यादव   
   

10 टिप्‍पणियां:

  1. पितृदिवस (फादर्स डे) की शुभ कामनाएँ
    बेहतरीन सीख देती कथा
    सादर

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 22 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. पितृ दिवस की हार्दिक बधाई।
    लाजवाब लघुकथा 👌
    महत्वपूर्ण संदेश देती शिक्षाप्रद।
    सादर प्रणाम आदरणीय सर।🙏

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  4. सुंदर लघु-कथा । लाजवाब

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  5. बहुत ही सुंदर हृदय स्पर्शी लघुकथा आदरणीय सर.
    सादर

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  6. वाह!अनुज रविन्द्र जी ,बहुत ही सुंदर ,सीख देती हुई कहानी । अपने -अपने कर्म पर सभी को गर्व होना चाहिए ।

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  7. हर इंसान को अपने कार्य पर अभिमान होता है। सुंदर संदेश देती लघुकथा।

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  8. लाजवाब !
    कितना कुछ कहती सुंदर लघुकथा।

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  9. बहुत दिलचस्प लघुकथा , कुछ अलग सा माहौल बना दिया कथा ने
    सब कुछ समेटे है ये कथा , इक पिता के मन के भाव , चिंता , अपने रोज़गार के प्रति स्वभिमान
    ये गागर में सागर कथा है
    बधाई



    पितृ दिवस की हार्दिक बधाई।
    सादर प्रणाम

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