आज
एक अनमने ऊँघते उदास गुलाब को
एक अनमने ऊँघते उदास गुलाब को
ग़ौर से देखा
खिंची हुई थी
भाल पर उसके
चिंता की रेखा
सौंदर्यविहीन सूखी-सिकुड़ी सुमन पाँखें
अब झर जाने को हैं तत्पर
समय पर पड़ी नहीं नज़र
कलियाँ फूल हुईं
फूल खिले रहे किसी प्रतीक्षा में
ग़ाएब थी हलचल
क़ैद थे फूलों में अर्थ ढूँढनेवाले
गुलाब के फल
पक जाने की राह पर हैं
लॉकडाउन के बाद
फिर आने लगे हैं दीदा-वर
चिर-प्रतीक्षित चमन में
गुलाब के बीज
मिल जाएँगे मिट्टी में
अनुकूल माहौल में
फिर उगेंगे, बढ़ेंगे; खिलेंगे
नई उमंग-तरंग, तमन्नाओं के साथ
नाज़ुक गुलाब के फूल की
ख़ुशबू में तर हो
रंगीन पंखुड़ियाँ
फिर छुएगा कोई हाथ।
© रवीन्द्र सिंह यादव
© रवीन्द्र सिंह यादव
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (05-06-2020) को
"मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है," (चर्चा अंक-3723) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
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"मीना भारद्वाज"
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्मीदों के आंगन में फिर गुलाब खिलेंगे
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना सर
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंलोकडाउन में गुलाब भी चिंता में डूबा
जवाब देंहटाएंवाह क्या सोच है
सुन्दर प्रस्तुति