शनिवार, 19 मई 2018

आओ! राष्ट्रीय-चरित्र पर मंथन करें.....

आओ!
मनगढ़ंत, मनपसन्द, मन-मुआफ़िक, मन-मर्ज़ी का 
इतिहास पढ़ें, 
अज्ञानता का विराट मनभावन 
आनंदलोक गढ़ें। 
आओ! 
बदल डालें 
सब इमारतों, गलियों, शहरों, सड़कों, संस्थानों के नाम, 
लिख दें बस अपने-अपनों के नाम। 
आओ! 
बदल डालें 
कुछ क़ानून-क़ाएदे भी, 
होंगे दूरगामी फ़ाएदे भी।  
आओ! 
पाठ्यक्रम भी बदल डालें,
अपनों को उपकृत करें और बौद्धिक विकास में भी ख़लल डालें।  
आओ! 
पेपर लीक कर लें,
प्रतिभा को रौंदकर अपनी तिजोरी भर लें। 
आओ! 
 कॉर्पोरेट के तलवे चाटें, 
राष्ट्रीय सम्पदा लुटाएँ और चंदे की ख़ैरात को आपस में बाँटें।  
आओ!
बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक खेल खेलें,
काटें नफ़रत से उगाई फ़सल व बेलें। 
   
आओ!
राष्ट्रवाद का नगाड़ा बजाएँ, 
शून्य से मुद्दों को पैदाकर अखाड़ा बनाएँ।  
आओ!
नई पीढ़ी का भविष्य सँवारें,  
किंतु कैसे ?
परिष्कृत ज्ञान और दक्षता के लिये  
कब तक विदेश के पाँव पखारें ?
आओ!
राष्ट्रीय-चरित्र पर मंथन करें, 
कल के लिये आत्मावलोकन करें।   

#रवीन्द्र सिंह यादव  

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-02-2020) को    "भारत में जनतन्त्र"  (चर्चा अंक -3609)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं
  2. करारा व्यंग्य ,बेहतरीन सृजन ,सादर नमन सर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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