देख रहा है सारा आलम
खेतों में सरसों फूली है
ओस से भीगी शाख़ पर
नन्ही चिड़िया झूली है
परेड की चिंता न समिति की फ़िक्र
हँसिया के बियाह में खुरपी का ज़िक्र
खेत के पहरेदारों संग अनशन में बैठे
सत्ता की नज़रों में वे गाजर-मूली हैं
ख़ुद के कंधों पर ख़ुद को ढोना
उनसे सीख लो मगर-सा रोना
लज्जाहीन न समझेंगे अब वो
दंभ में अक्ल राह अब भूली है।
© रवीन्द्र सिंह यादव
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 15-01-2021) को "सूर्य रश्मियाँ आ गयीं, खिली गुनगुनी धूप"(चर्चा अंक- 3947) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
निडर लेखनी
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
हँसिया के बियाह में खुरपी का जिक्र करके कितना कुछ कह दिया है । प्रभावी अंदाज ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंइस समय की शानदार कविता
जवाब देंहटाएंबधाई
सुबह की भूली शायद शाम को घर आ जाए
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार 16 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंदेख रहा है सारा आलम
जवाब देंहटाएंखेतों में सरसों फूली है
ओस से भीगी शाख़ पर
नन्ही चिड़िया झूली है
B
मधुर काव्य जिसमें प्रकृति का सुंदर चित्र और धरती पुत्रों की दशा, दिशा पर सटीक चिंतन आदरणीय रवींद्र भाई। हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏
देख रहा है सारा आलम
जवाब देंहटाएंखेतों में सरसों फूली है
ओस से भीगी शाख़ पर
नन्ही चिड़िया झूली है
बहुत सुंदर रचना...